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________________ ( १४६ ) मानवे में रईस व जागीरदारों के गुरु हैं उनका इतिहास - महाराज दलपतसिंहजी जिस समय अपने भाई बेटे की जागीरी में परगना बलाहेड़ा पाकर जोधपुर से अलग हुवे उस समय गुरां महेशदासजी को भी जोधपुर से अपने साथ लाये और अपने अलग कुलगुरु स्थापन कर तनाम जाया परण्या का दस्तूर बक्ष कर वलाहेड़े में जागीर बक्षी व वशावली सुरण करके नामे लिखवा कर लाख पसाव वक्षा । सं० १६८० गाम डावडियोप गुरॉ हीराजी को सं० १७६६ में रतलाम राज्य सस्थापक महाराजा रतनसिंहजी के पुत्र अखेराजजी से गाम रतनपुरा परगने उगदड दाल्या पाये जो आज कल देवास राज्य में हैं । T महाराजा रतनसिंहजी से सं०.१७१५ मे नागड़ाखेड़ा जागीर में पाये जो आजकल सीतामोह राज्य में है । गुरा कानजी सं० १७४१ मैं महाराज रुगनाथ से सासरण रुपे २०० ) की पाये । गुरा शोभजी सं० १७८७ में कुंवर वक्तसिंहजी के राजलोक से माजे भुव, ले में जागीर पाये । गुरॉ पेमजी जोधपुर महाराज अजीतसिंहजी से केरुरे मार्ग धरती बीघा २०० पाये । सं० १७६४ में व भुवाले में दरबार राजसिंहजी से जागीर पाये । गुरॉ रामलालजी से सं० १७८० में कुँअर वख्तसिंहजी से जागीर पाये । गुरॉ लालजी को महाराजा होलकर तुकोजीराव ने अपने गुरु माने थे । होलकर खानदान के उपाध्याय के बाद इन्ही के गव अक्षत होता था। महाराजा होलकर ने अपने पास रखकर खास इन्दार में गजराबाई वाली हवेली ब्राह्मणी मुताबिक आठ आदमियों का भोजन व १५०) रुपया माहवार हतखर्च त्र तमाम जाया परण्या साल गिरह वगैरह के नेग दस्तूर मिलते थे' यह लालजी महाराजा सेंविया जियाजीराव वो मेदपाटेश्वर महाराणा जी
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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