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________________ (७) रहने में प्रजा को निर्विघ्न स्थान मे सुरक्षित रखने का विचार श्रा, एकवार महाराज कुमार श्री प्रतापसिंहजी के कॅवर श्रीअमरसिहजी की मन्नत उतारने को श्री कैलाशपुरी में श्री एकलिङ्गजी महाराज आये वहाँ देवाग भीतर उन्होने अपने विचार माफिक सुरक्षित स्थान समझा क्योंकि यहाँ चारो तरफ पर्वतमाला होने से प्राकृतिक सुद्ध कोट और भूमि भी उर्बरा. अच्छा जलवायु का होना निश्चय कर नगर वसाना आरम्भ किया था। वि० सं० १६८२ मे हमारे पूर्वज रूपचन्द्रजी ने मेरता से यहाँ आकर पोसाल बाँधी जहाँ पर पोसाक नियन की उस मोहल्ले का नाम मातीचोहट्टा के नाम से प्रसिद्ध है, इसके प्रमाण मे एक प्राचीन सन्द का हवाला देता हूँ। 'रूपचन्दजी के चतुर्थ पुत्र लाजी नाम के थे। ये व्य करण पाठी थे। उनके हस्त लिखित एक शिल' नेख वि० सं० १७०८ का वैशाख सुद ७ गुरुवार का कैलाशपुरी मे एकलिङ्गाजी के मन्दिर में दक्षिण द्वार श्री कालिका माताजी के मन्दिर के पीछे श्री गोस्वामीजी महाराज बड़े रामानन्दजी महाराज के समाधि स्थान पर आज लौ प्रशस्ति रूप में विद्यमान है, इसके सिवाय और भी रान की सन्दो से यहाँ पा गहना सिद्ध होना है, रूचपन्दजी से लेकर बसन्तिलाल, गनपत नाल का सजरा नीचे दर्ज है। रूपचन्दजी . रामचन्दजी अमरचन्दजी शुभकर्णजी बेलाजी पालालजी । राजनगर करेड़ा मोविन्दगढ़ .
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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