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________________ (४१) नाश करते रहे । श्रीतुकाराम शर्मा लट्ट, वी. ए. पी. एच. डी. एम. आर. ए. एस. एम. ए. एम. बी एम. जी. ओ. एस. प्रोफेसर क्वीन्स कालेल बनारस, जैसे उन्हे आदि काल में खाने, पीने, न्याय, नीति, कानून का ज्ञान मिला वैसे ही अध्यात्म शास्त्र का ज्ञान भी जीवों ने पाया । और वे अध्यात्म शास्त्र में सब है। जैसे 'साँख्य योगादि 'दर्शन और जैनादि दर्शन' तब तो सज्जनो आप अब अवश्य जान गये होगे कि जैन मत तब से प्रचलित हुश्रा, जब से संसार में सृष्टि का आरम्भ हुआ-(सर्वतंत्र, स्वतन्त्र सल्पम्प्रदाय स्वामि राम मिश्र शास्त्री) वेदों मे सन्यास का नाम निशान भी नहीं है, उस वक्त में संसार छोड़ कर वन मे जाकर तपस्या करने की रिती वैदिक ऋषि नही जानते थे। वैदिक धर्म सन्यास-आश्रम की प्रवृत्ति ब्राह्मण काल में हुई है । जिसका ममय करीब ३००० वर्प जितना पुराणा है। यही राय श्रीयुत रमेशचन्द्र दत्त अपने 'भारत वर्ष की प्राचीन सभ्यता का इतिहास नामक पुस्तक में लिखते हैं। तब तक के दूसरे ग्रन्यों की रचना हुई जो 'ब्राह्मण' नाम से पुकारे जाते हैं। इन ग्रन्थो में यज्ञो की विधि लिखी है। यह निस्सार और विस्तिर्ण रचना सर्व साधारण के क्षीण शक्ति होने और ब्राह्मणों के स्वमताभिमान का परिचत देती है । संमार छोड़ कर वन में जाने की प्रथा जो पहिले नाम मात्र को भी नहीं थी, चल पडी और 'ब्राह्मणो' के अन्तिम भाग अर्थात् आरण्य मे वन की विधि क्रियाओं का वर्णन है।
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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