SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रव्यविचार ५९ प्रवेश नहीं करते । जैसे चक्षु रूपोंमें प्रवेश नहीं करता, उसी प्रकार ज्ञानी ज्ञेयोंमें प्रवेश नहीं करता और न ज्ञेयोंसे आविष्ट होता है, लेकिन सम्पूर्ण जगत्को वह भलीभाँति जानता है और देखता है । लोकमें जैसे दूधमें डूबा हुआ इन्द्रनील रत्न अपने प्रकाशसे दूधको व्याप्त कर देता है, उसी प्रकार ज्ञान पदार्थोंको व्याप्त कर देता है । अगर पदार्थ ज्ञानमें न होते तो ज्ञान सर्वगत न कहलाता; मगर जब कि ज्ञान सर्वगत तो है पदार्थ ज्ञानमें स्थित नहीं हैं, यह कैसे कहा जा सकता है ? केवली भगवान् ज्ञेय पदार्थोंको न ग्रहण करते हैं, न त्यागते हैं, और न उन पदार्थोंके रूपमें परिणत ही होते हैं । फिर भी वह सभी कुछ, निरवशेष, जानते हैं । ( प्र०१, २८ - ३२ ) ज्ञायकता - जो जानता है वही ज्ञान है । भिन्न ज्ञानके द्वारा आत्मा ज्ञायक नहीं होता। इसलिए आत्मा ही ज्ञान है । आत्मा ज्ञानरूपमें परिणत होता है और समस्त पदार्थ उस ज्ञानमें स्थित होते हैं । ज्ञेय द्रव्य अतीत, अनागत और वर्तमानके भेदसे तीन प्रकारका है और इसमें आत्मा तथा अन्य पाँच द्रव्योंका समावेश हो जाता है । इन सब द्रव्यों के विद्यमान और अविद्यमान पर्याय, अपने-अपने विशेषों सहित केवलज्ञानमें ऐसे प्रतिबिम्बित होते हैं, जैसे वर्तमानकालीन हों। जो पर्याय अभीतक उत्पन्न नहीं हुए हैं और जो उत्पन्न होकर नष्ट हो गये हैं, वह सब अविद्यमान पर्याय कहलाते हैं और केवलज्ञान उन सबको प्रत्यक्ष जानता है | अगर अतीत और अनागत पर्यायोंको केवलज्ञान न जानता होता तो कौन उसे दिव्य ज्ञान कहता ? जो जीव इन्द्रियगोचर पदार्थों को अवग्रह, ईहा आदि क्रमपूर्वक जानते हैं, उनके लिए परोक्ष वस्तुको जानना अशक्य होता है । अतीन्द्रिय ज्ञान तो सभी पर्यायोंको जानता है; चाहे वह प्रदेशसहित हो या प्रदेशरहित हो, मूर्त हो या अमूर्त हो, अतीत हो या आनागत हो । १. जैसे दीपक अपने-आपको और अन्य पदार्थों को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार आत्मा स्व और पर दोनोंको जानता है, इसलिए आत्माका भी इथोंमें समावेश होता है ।
SR No.010400
Book TitleKundakundacharya ke Tin Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy