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________________ कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न उसके यहाँ मतिवरन् नामका एक ग्वाला लड़का रहता था और उसके ढोर संभालता था। एक दिन लड़केने देखा कि दावानल सुलगनेसे सारा वन खाक हो गया है, किन्तु बीचमें थोड़े-से झाड़ हरे-हरे बच रहे है, तलाश करने पर पता चला कि वहां किसी साधुका आश्रम था और उसमें आगमोंसे भरी एक पेटी थी। उसने समझा, इस शास्त्रग्रन्थोंकी मौजूदगीके कारण ही इतना भाग दावानल-द्वारा भस्म होनेसे बच रहा है। उन ग्रन्थोंको वह अपने ठिकाने ले गया और बड़ी सावधानीके साथ उनकी पूजा करने लगा। किसी दिन एक साधु उस व्यापारीके यहाँ भिक्षाके लिए आये । सेठने साधुको अन्नदान दिया। उस लड़केने भी वह ग्रन्थ साधुको दान दे दिये । साधने सेठ और लड़के दोनोंको आशीर्वाद दिया। सेठके पुत्र नहीं था। थोड़े समय बाद वह ग्वाला लड़का मर गया और उसी सेठके घर पुत्रके रूपमें जन्मा। बड़ा होने पर वही लड़का कुन्दकुन्दाचार्य नामक महान् आचार्य हुआ। यह है शास्त्रदानकी महिमा'! २. पण्डित नाथूरामजी प्रेमी 'ज्ञानप्रबोध' नामक ग्रन्थके आधारपर दूसरी दन्तकथाका इस प्रकार उल्लेख करते हैं - १. इस दन्तकथाका उल्लेख प्रो० चक्रवतीने पंचास्तिकाय ग्रन्थकी अपनी । प्रस्तावनामें किया है। वे कहते हैं कि 'पुण्यास्रव कथा' ग्रन्थमें शालदानके उदाहरण रूपमें यह कथा दी गयी है। उनके द्वारा उल्लिखित यह 'पुण्यास्रव कथा' ग्रन्थ कौन-सा है, कुछ निश्चित नहीं किया जा सकता । नागराजने (ई.स. १३३१ ) "पुण्यासव' नामक संस्कृत ग्रन्थ कनड़ीमें भाषान्तर किया है, ऐसा अपने अनुवादमें प्रकट किया है। परन्तु उसके आधारपर शक सं० १७३६ में हुए मराठी अनुवादमें यह कथा नहीं पायी जाती। विशेष नामोंकी रचना आदिसे, जान पड़ता है, प्रो० चक्रवर्तीके पास कोई तामिल भाषाका ग्रन्थ होना चाहिए। २. देखो - जैनहितैषी पु० १० पृ० ३६६ ।
SR No.010400
Book TitleKundakundacharya ke Tin Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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