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________________ [६५ ] अने तेमांय अन्नदाननो महिमा ओछा गवायो नथी. गृहस्थ योगना शिक्षावतोमा चोथु शिक्षा व्रत अतिथिसंविभाग आवे छे. अतिथिसंविभाग व्रत अटले साधु श्रमणो जेमने पर्व के उत्सवो छ नहि, अमने शुद्ध श्रने ग्राह्य वा साहारनुं शुभवृत्तिथी दान करवु ते. जुओ योगशास्त्र दानं चतुर्विधाहारपात्राच्छादनसमनाम् ? अतिथिभ्योऽतिथिसंविभागवतमुदीरितम् ।। प्र.३, गा८७, अने आधार टांकतां लखे छे-थदूचुः नायागयाणं कप्पाणेजाण, अन्नपाणाईणं दसाणं देसकालसद्धासक्कारक्कमजुश्र पराय भत्तीए आयाणुग्गहबुद्धीए संजयाणं दाणं अतिहिसंविभागो। छाया-न्यायागताना, कल्पनीयाना, अन्नपानादीनां द्रव्याणां देशकाल प्रद्धासत्कारक मयुक्त' परया भया श्रात्मानुग्रहबु या संयतानां दानं भतिथिसंविभागः ।। अन्न खेतीथीज उत्पन्न थाय छे हवेजो खेती श्रावकोने गहर्य होय तो श्रावकोने करेला दाननो महिमा शा माटे गावामां आवे छे. खेतीनो सर्वथा निषेध करनार धर्म, खेतीथी उपजता अन्नदाननी बाटली बंधी प्रशंसा करे ? अन्नदाननी प्रशंसा थाय छे अनो अर्थज के खेती श्रावको ने वाधित नथी. भगवतीसूत्रमा केवा केवा पापी लोकोनी केवी खराव गति थई अ वर्णवती अनेक क यात्रो आवे छे. पण अक पण वार्ता अवी नथी के कोई खेडुत खती करवाथी नरके गयो. थी उलटु, उपासकदशासूत्रमा प्रावती कथानोमां वधा
SR No.010399
Book TitleKrushi Karm aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherShobhachad Bharilla
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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