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________________ [ ५६] संपूर्ण छूट प्रापेली छे से दर्शाववा पुरतो छे. जैनदर्शनमा प्रमाण अवा श्रा आचार्यना स्थूल प्राणातिपात विरमणबतना अर्थमा कंई खामी -भूल-होय से मानी शकाय नहिं. वली श्रा हेमचन्द्रना योगशास्त्रमाथी गृहस्थोने आपेली छटनो फकरो ध्यानमा लेवानो छे. । तदुपरांत, स्थूल प्राणातिपातविरमणव्रतना पांच अतिचारो वर्णवतां आवश्यक सूत्र कहे छे-जे उपासकदशा सूत्रमा पण श्रेज रूपे आवे छे थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समोवासएणं इमे पञ्च अइयारा जाणियव्या, तंजहा-बन्धे, वहे, छविच्छेए, अइभारे, भत्तपाणवुच्छेए । अने अनी व्याख्या करतां हरिभद्र सूरि कहे छ बन्धो दुविधो दुप्पदाणं चतुष्पदाणं च, अट्टाए अणट्टाए य, अणहाए न वहति बन्धेत्तु म्; अट्ठाए दुविधो निरवेक्खो सावेक्खो य .. .... ... . ....... ... ." अविभारी ण ारोवेतन्वी, पुन्च चेष जा वाक्षणाए जीनिया सा मोक्तव्वा, ण होजा थपणा जीविता ताधे दुपदो जं सय उक्खिवति उत्तारेति वा भारं एवं वहाधिज्जति, बहल्ला जा साभावियानोवि भारातो ऊणश्रो कीरति, हलसगडेसु वि वेलाए मुयति । श्रा 'अतिभार' कृषि संबंधमां खास ध्यान खेंचे छे. बलदो उपर खब भार न लादवो, अमने हलमांथी वेलासर मुक्त करवा. अनो भंग करवाथी गृहस्थने अहिंसा बतनो भंग थाय छ. जो गृहस्थोने खेती निपिद्ध होय तो वलदने हलमाथी यथासमय मुक्त करवा अq हरिभद्र सूरि केवी रीते लखी शके ?
SR No.010399
Book TitleKrushi Karm aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherShobhachad Bharilla
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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