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________________ [ २० ] शास्त्र में आनन्द श्रावक का चरित मनोरंजन के लिए, नानी की कहानी की तरह नहीं लिखा गया है। यह एक यादर्श चरित है, जो इस भावना से लिखा गया है कि आगे के श्रावक उसे अपना पथप्रदर्शक समझे और उसका अनुकरण करें। लेकिन हम लोगों के बारह वनों की बात ही दूर, मूल गुणों तक का ठिकाना नहीं है और चले है हम प्रानन्द से भी आगे बढ़ने ! अानन्द पाँच सौ हल चलाने की छूट रखना है और हम एक हल चलाने में ही महापाप मानकर उम्मका त्याग करने की धृष्टता करते है ! श्राचार का यह व्यतिक्रम, विकास का नहीं. अधःपतन का ही कारण हो सकता है। पन्द्रह कसीदानों में एक साड़ीकम्म अर्थात शकट कर्म भी है। शकटकर्म का अर्थ है-~-गाड़ी वनने, बेचने और चलाने की आजीविका करना। अगर इस कर्मादान का फोड़ीकम्मे की भॉति समान्य अर्थ लिया जाय तो श्रावक बैलगाड़ी. घोडागाड़ी, तांगा, सोटर आदि कोई गाड़ी भी नहीं रख सकेगा, क्योंकि शकट चलाना कमादान है और व्रती श्रावक को कमादान का त्याग करना ही चाहिए। औरों की बात जान दीजिए और सिर्फ पहले कर्मादान 'अंगारकर्म' को ही लीजिए। श्रावक अपने उदरनिर्वाह के लिए अग्नि जालाता है, कोयले जलाता है, तो क्या उसे कर्मादान का महापाप लगता है ? अगर भोजन बनाने के लिए
SR No.010399
Book TitleKrushi Karm aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherShobhachad Bharilla
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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