SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १७ ] उल्लेख करके उसमें 'पादि' पद जोड़ देते हैं । आशाधरजी भी कृषि का उल्लेख अवश्य करते हैं और उसमें 'आदि' पद सिद्धसेनजी की भांति ही लगा देते हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि शायद उस समय भी कुछ लोगों को खेती के विषय में भ्रम होगा और उस भ्रम का निवारण करने के लिए प्राचार्यों ने अपने-अपने समय में आरंभत्याग प्रतिमा का स्वरूप बतलाते समय कृषि का खास तौर से उल्लेख किया होगा यह बतलाने के लिए कि कृषि का त्याग आठवी प्रतिमा में होता है। कुछ भी हो, यह स्पष्ट है कि इस विपय में दिगम्बर-- श्वतास्वर सम्प्रदायों के प्राचार्य एकमत हैं कि कृषि का त्याग साधारण श्रावक के लिए जरूरी नहीं है। दिगम्वर सम्प्रदाय के आठवी प्रतिमाधारी श्रावक प्रायः गृहवास का त्याग कर देते हैं और श्वताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार अाजकल प्रतिमाओं का धारण ही नहीं हो सकता । इससे यह स्पष्ट है कि गृहस्थ श्रावको ले खेती का त्याग करने के लिए कहना और खेती करने से श्रावकधर्म की मर्यादा का भंग मानना भ्रमपूर्ण है। __ यह अत्यन्त खेद की बात है कि हमारे कत्तिपय धर्मगुरु भी प्रायः इस भ्रम में पड़े हुए हैं। इसका परिणाम यह होता है कि गृहस्थों को गृहस्थधर्म की बातें नहीं बतलाई जाती और __ साधुधर्म का आचार उन पर लादा जाता है। गृहस्थ, श्रावक के कर्तव्यों का भली-भाँति पालन नहीं करते और साधुधर्म
SR No.010399
Book TitleKrushi Karm aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherShobhachad Bharilla
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy