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Translation preserving Jain terms: The Kālayoni (temporal origin) or temporal exposition of the Sixth Gāthā, which states "Those who are presently affected by the Kasāyas (passions), were they also affected by the same Kasāyas in the past?" should be understood as follows: 240. Those who are currently affected by the Māna (pride) Kasāya, their past has gone through three types of time periods - Mānakāla (time of pride), Nomānakāla (time of non-pride), and Miśrakāla (mixed time). 241. Similarly, the Krodha (anger) Kasāya also has three types of time periods. 242. The Māyā (deceit) Kasāya also has three types of time periods. 243. The Lobha (greed) Kasāya also has three types of time periods. 244. Thus, for those affected by the Māna Kasāya, this time (Kāla) is of twelve types.
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________________ ५८७ गा० ६९] कषायोपयोग त्रिविध-काल-निरूपण २३८.'जे जे जम्हि कसाए उवजुत्ता किण्णु भूदपुब्बा ते' त्ति एदिस्से छट्ठीए गाहाए कालजोणी कायव्वा । २३९ तं जहा । २४०. जे अस्सि समए माणोवजुत्ता, तेसिं तीदे काले माणकालो णोमाणकालो मिस्सयकालो इदि एवं तिविहो कालो। २४१. कोहे च तिविहो कालो । २४२. मायाए तिविहो कालो । २४३. लोभे तिविहो कालो । २४४ एवमेसो कालो माणोवजुत्ताणं बारसविहो। चूर्णिसू०- 'जो जो जीव जिस कषायमें वर्तमानकालमें उपयुक्त हैं, क्या वे जीव अतीतकालमें उसी कषायसे उपयुक्त थे' इस छठी गाथाकी काल-योनि अर्थात् काल-मूलक प्ररूपणा करना चाहिए । वह काल-मूलक प्ररूपणा इस प्रकार है-जो जीव इस वर्तमान-समयमें मानकपायसे उपयुक्त हैं, उनका अतीतकालमें मानकाल, नोमानकाल और मिश्रकाल, इस प्रकारसे तीन प्रकारका काल व्यतीत हुआ है ॥२३८-२४०॥ विशेपार्थ-जिस कालविशेषमे विवक्षित वर्तमानकालिक मानकषायोपयुक्त समस्त जीवराशि एकमात्र मानकषायोपयोगसे ही परिणत पाई जाती है, उस कालको 'मानकाल कहते हैं । इसी विवक्षित जीवराशिमेसे जिस काल विशेषमें एक भी जीव मानकपायमें उपयुक्त न होकर क्रोध, माया और लोभकषायोमें ही यथाविभाग परिणत हो, उस कालको 'नोमानकाल' कहते है । इसका कारण यह है कि विवक्षित मानकषायके अतिरिक्त शेष कषाय 'नोमान' इस नामसे व्यवहृत किये जाते है । पुनः इसी विवक्षित जीवराशिमेसे जिस कालमें थोड़ी जीवराशि मानकषायसे उपयुक्त हो और थोड़ी जीवराशि क्रोध, माया अथवा लोभकषायमें यथासंभव उपयुक्त होकर परिणत हो, उस कालको 'मिश्रकाल' कहते हैं। मानकषायसे उपयुक्त जीवोंका उक्त तीन प्रकारका काल व्यतीत हुआ है। चूर्णि सू०-क्रोधकपायमें तीन प्रकारका काल होता है । मायाकषायमें तीन प्रकारका काल होता है । लोभकषायमे तीन प्रकारका काल होता है । इस प्रकार मानकषायसे उपयुक्त जीवोका यह काल बारह प्रकारका है ।। २४१-२४४॥ विशेषार्थ-ऊपर जिस प्रकार वर्तमान समयमें मानकषायोपयुक्त जीवराशिका अतीतकालमें मानकाल, नोमानकाल और मिश्रकाल, यह तीन प्रकारका काल व्यतीत हुआ बतलाया गया है, उसी प्रकारसे उसी मानकषायसे उपयुक्त जीवराशिका अतीत कालमे क्रोधकषायसम्बन्धी क्रोधकाल, नोक्रोधकाल और मिश्रकाल यह तीन प्रकारका काल व्यतीत हुआ १ कालो चेव जोणी आसयो पयदपरूवणाए कायन्वो त्ति वुत्त होइ । जयध० २ तत्थ जम्मि कालविसेसे एमो आदिट्ठो (विवक्खिदो ) वट्टमाणसमयमागोवजुत्तजीवरासी अणूणाहिओ होदूण माणोवजागेणेव परिणदो लन्मइ, सा माणकालो त्ति भण्णइ । एमा चेव गिरुद्ध जीवरामी जम्मि कालविससे एगो वि माणे अहोदूण कोह-माया लोभेसु चेव जहा पविभाग परिणादा सो ण माणकालो त्ति भण्णदे, माणवदिरित्तसकमायाण णोमाणववएसा रहतेणावलवणादो। पुणो हमो चेव णिरुद्धजीवरासी जम्मि काले थावो माणोवजुत्तो, थोवो कोह-माया लाभेसु जहासभवमुवजुत्तो होदूण परेणदो दिट्दो, सो मिस्सयकालो णाम | जयध०
SR No.010396
Book TitleKasaya Pahuda Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1955
Total Pages1043
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size71 MB
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