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Kasaya-Pahuda Sutta [65. The time for one jiva. 66. The minimum and maximum time for the migration of the pradesha (spatial units) of all karmas is the same. 67. The minimum and maximum time for this is one samaya (instant).] Churni Sutra - Similarly, one should understand the ownership of the minimum pradesha migration of the stri-veda (female sex). The only difference is that it does not arise in the jivas with a lifespan of three palya-prama. [68. The interval. 69. There is no interval for the maximum pradesha migration of all karmas. This is a statement based on a teaching. 70. Or, according to another teaching, what is the interval for the maximum pradesha migration of the samyaktva-prakriti and anantanubandhi kasayas? 71. The minimum is asankhyeya-loka-pramana. 72. The maximum is the duration of the upardha-pudgala-parivartan.]
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________________ कसाय - पाहुड सुत्त [ ५ संक्रम-अर्थाधिकार सय वेदस्स जहण्णओ पदेससंकमो । ६४. एवं चेव इत्थिवेदस्स वि, णवरि तिपलि - दोवमिसु ण अच्छिदाउगो । ६५. एयजीवेण कालो । ६६, सव्वेसिं कम्माणं जहण्णुकस्सपदेससंकमो केवचिरं कालादो होदि १६७ जहण्णुकस्सेण एयसमओ' । ४१० ६८. अंतरं । ६९. सव्वेसि कम्माणमुक्कस्तपदेस संकायस्स गत्थि अंतरं । ७०. अधवा सम्मत्ताणताणुबंधीण मुक्कस्सपदेससंकामयस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ७१. जहणेण असंखेज्जा लोगा । ७२. उक्कस्सेण उबडूपोग्गलपरियहं । ४ चूर्णिसू० - इसी प्रकार ही स्त्रीवेदके जघन्य प्रदेशसंक्रमण के स्वामित्वको जानना चाहिए | विशेषता केवल इतनी ही है कि तीन पल्योपमकी आयुवाले जीवोमे वह नही उत्पन्न होता है ॥ ६४॥ चूर्णिसू० [0-अव एक जीवकी अपेक्षा प्रदेशसंक्रमणके कालको कहते हैं || ६५॥ शंका - सर्व कर्मों के जघन्य और उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमणका कितना काल है ? ॥६६॥ समाधान - सर्व कर्मोंके जघन्य और उत्कृष्ट प्रदेश संक्रमणका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ॥ ६७॥ चूर्णि सू० ० - अव प्रदेशसंक्रमणके अन्तर को कहते है - सर्व कर्मों के उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमणका अन्तर नहीं है । यह एक उपदेशकी अपेक्षा कथन है ।। ६८-६९ ॥ शंका- अथवा अन्य उपदेशकी अपेक्षा सम्यक्त्वप्रकृति और अनन्तानुबन्धी कपायोके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमणका अन्तरकाल कितना है ? ॥ ७० ॥ समाधान- सम्यक्त्वप्रकृति और अनन्तानुवन्धी कपायोके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमणका जघन्यकाल असंख्यात लोक-प्रमित और उत्कृष्टकाल उपार्थपुद्गलपरिवर्तन- प्रमाण है ।।७१-७२ ।। www १ कुदो; सव्वेसि कम्माण जहष्णुक्कस्सपदेससकमाणमेयसमयादो उवरिमवठाणासभवादो । जयध० २ होउ णाम खवगसव घेण लक्कस्वभावाण मिच्छत्तादिकम्माणमतराभावो, ण वुण सम्मत्ताणता वधीणमतराभावो जुत्तो, तेसिमखवयविसयत्तेण लबुक्कस्तभावाणमतरसभवे विप्पडिसेहाभावादो १ एस दोसो, गुणिदकम्मसियलक्खणेणेयवार परिणदस्स पुणो जहण्णदो वि अढपोग्गलपरियमेत्तकालव्भतरे तव्भावपरिणामो णत्थि त्ति एवविहाहिप्पाएणेदस्स सुत्तस्स पयट्टत्तादो । एसो ताव एक्को उवएसो चुण्णिसुत्तयारेण सिस्साण परुविदो । अण्णेणोवरसेण पुण सम्मत्ताणताणुवधीणमुक्कस्स पढेसस कामयतरसभवो अस्थि त्ति तप्पमाणावहारणड उत्तरमुत्त भणइ । जयध० ३ गुणिदकम्म सियलक्खणेणागतूण णेरइयचरिमसमयादो हेट्ठा अतोमुहृत्तमोसरिय पढमसम्मत्तमुप्पाइय जहावुत्तपदेसे सम्मत्ताणताणुवघीण मुक्कस्सप देससक मस्सादि काढूण अतरिय अणुक्कस्सपरिणामेसु तेत्तियमेत्तकालमच्छिऊण पुणो सव्बलहु गुणिदकिरियासव घमुवसामिय पुव्युत्तेणेव कमेण पडिवण्णतत्र्भावम्मि तदुवलभादो | जयघ० ४ पुव्युत्तविहाणेणेवादि करिय अतरिदस्स देसूदपोग्गल परियमेत्तकाल परिभमिश्र तदवमाणे गुणिदकम्म सिओ होण सम्मत्तमुप्पाइय पुव्व व पडिवगतभावम्मि तदुवलद्वीदो । जयध०
SR No.010396
Book TitleKasaya Pahuda Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1955
Total Pages1043
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size71 MB
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