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## Translation: 350 Kasaya Patud Sutra [5. The fourfold संज्वलन and पुरुषवेद of the क्षपक and अनुपशामक जीवs are like मिथ्यात्व. 37. The fourfold संज्वलन and पुरुषवेद of the क्षवगोवसामग जीवs are either सर्वघाती or देशघाती, and either द्विस्थानीय or एकस्थानीय. 38. The अनुभागसंक्रमण of the सम्यक्त्व जीव is always देशघाती. 39. It is also either एकस्थानीय or द्विस्थानीय. ] The जघन्य अनुभागसंक्रमण is always द्विस्थानीय. The अजघन्य अनुभागसंक्रमण is also द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय, and चतुःस्थानीय. But the अनुभागसंक्रमण of सम्यग्मिथ्यात्व is always द्विस्थानीय, whether it is उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य, or अजघन्य. **Churnisu:** The fourfold संज्वलन and पुरुषवेद of the क्षपक and अनुपशामक जीवs should be understood as being like मिथ्यात्व. The अनुभागसंक्रमण of the क्षपक and उपशामक जीवs is both सर्वघाती and देशघाती. It is also both द्विस्थानीय and एकस्थानीय. ||36-37|| **Special Meaning:** Before the क्षपक and उपशामक जीवs ascend to the seventh गुणस्थान, their fourfold संज्वलन and पुरुषवेद are सर्वघाती and द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय, and चतुःस्थानीय. When the क्षपक and उपशामक जीवs ascend to their respective श्रेणी, their उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण is always द्विस्थानीय and सर्वघाती. Their अनुत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण is both द्विस्थानीय and एकस्थानीय, and both सर्वघाती and देशघाती. Their जघन्य अनुभागसंक्रमण is देशघाती and एकस्थानीय. Their अजघन्य अनुभागसंक्रमण is both एकस्थानीय and द्विस्थानीय, and both देशघाती and सर्वघाती. **Churnisu:** The अनुभागसंक्रमण of सम्यक्त्वप्रकृति is always देशघाती. It is also both एकस्थानीय and द्विस्थानीय. ||38-39|| 1. Why? Because there is no difference between सर्वघाती and द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय, and चतुःस्थानीय. ||Jayadh|| 2. For example, the अनुभागसंक्रमण of the क्षवगोवसामग जीवs is either सर्वघाती or देशघाती, and either द्विस्थानीय or एकस्थानीय. This is because it is obtained at the time of the first entry into the अवकरणपवेस. The अनुभागसंक्रमण of the अनुत्कृष्ट जीव is either द्विस्थानीय or एकस्थानीय, and either सर्वघाती or देशघाती. When is it एकस्थानीय? It is obtained when the क्षवगोवसामग जीव is bound by the नियम of the अतरकरण कादणेग, as in the case of the सुद्धणवकबंधसंक्रमण, and also during the किट्टीवेदगकाल. When is it देशघाती? It is obtained in the same way. The जघन्य अनुभागसंक्रमण is always देशघाती and एकस्थानीय, as it is obtained at the time of the किट्टीण चरिमसमय of the सभवणवकबंध. The अजघन्य अनुभागसंक्रमण is either एकस्थानीय or द्विस्थानीय, and either देशघाती or सर्वघाती, as it is obtained in the same way as the अनुत्कृष्ट जीव. ||Jayadh|| 3. Why? Because the उत्कृष्ट and अनुत्कृष्ट, जघन्य and अजघन्य are all the same in terms of देशघाती. ||Jayadh|| 4. The उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण is always द्विस्थानीय, as it is obtained due to the two नियमs of the लदा-दारुअसमाणा अनुभागs. The अनुत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण is either द्विस्थानीय or एकस्थानीय. This is because it is obtained due to the दंसणमोहक्खवणा, which is the अवस्सट्ठिदिसतकम्मप्पहुडि, and the एकस्थानीय अनुभाग. The जघन्य अनुभागसंक्रमण is always एकस्थानीय, due to the नियम of the विठ्ठाणिय. The समया
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________________ ३५० कसाय पाटुड सुत्त [५ संक्रम-अर्थाधिकार अक्खवग-अणुवसामगस्स चदुसंजलण-पुरिसवेदाणमणुभागसंकमो मिच्छत्तभंगो'। ३७. खवगुवसामगाणमणुभागसंकमो सव्वघादी वा देसघादी वा, वेट्टाणिओ वा एयट्ठाणिओ वा' । ३८. सम्मत्तस्स अणुभागसंक्मो णियमा देसघादी । ३९. एयट्ठाणिओ वेढाणिओ वा। है । जघन्य अनुभागसंक्रमण द्विस्थानीय ही होता है। अजघन्य अनुभागसंक्रमण द्विस्थानीय भी होता है, त्रिस्थानीय भी होता हैं और चतुःस्थानीय भी होता है। किन्तु सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य चारो ही प्रकारका अनुभागसंक्रमण द्विस्थानीय ही होता है। चूर्णिसू०-अक्षपक और अनुपशामक जीवके चारों संज्वलन और पुरुपवेदका अनुभागसंक्रमण मिथ्यात्वके समान जानना चाहिए। क्षपक और उपशामक जीवोके कर्मोंका अनुभागसंक्रमण सर्वघाती भी होता है और देशघाती भी होता है । तथा वह द्विस्थानीय भी होता है और एकस्थानीय भी होता है ॥३६-३७॥ विशेषार्थ-उपशम या क्षपक श्रेणी चढ़नेके पूर्ववर्ती सातवें गुणस्थान तकके जीवोके चारो संज्वलन और पुरुपवेदका अनुभागसंक्रमण सर्वघाती तथा द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय और चतुःस्थानीय होता है। क्षपक और उपशमश्रेणीपर चढ़नेवाले जीवोके उक्त पाँची कोंका उत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण द्विस्थानीय और सर्वघाती ही होता है। अनुत्कृष्ट अनुभागसंक्रमण द्विस्थानीय भी होता है और एकस्थानीय भी होता है, तथा सर्वघाती भी होता है और देशघाती भी होता है। इनका जघन्यानुभागसंक्रमण देशघाती और एकस्थानीय होता है। अजधन्यानुभागसंक्रमण एकस्थानीय भी होता है और द्विस्थानीय भी होता है। तथा देशघाती भी होता है और सर्वघाती भी होता है। चूर्णिसू०-सम्यक्त्वप्रकृतिका अनुभागसंक्रमण नियमसे देशघाती होता है। तथा वह एकस्थानीय भी होता है और द्विस्थानीय भी होता है ॥३८-३९॥ १ कुदो ? सव्वघादित्तणेण वि-ति चदुहाणियत्तणेण च भेदाभावादो | जयघ० २ त जहा-खवगोवसामगेसु एदेसिमुक्कस्साणुभागस कमो वेछाणिओ सव्वधादी चेय; अपुवकरणपवेसपढमसमए तदुवलभादो । अणुक्कस्साणुभागसंकमो वेवाणिओ एगट्ठाणिओ वा, सव्वघादी वा देसघादी वा । एगट्ठाणिओ कत्थोवलन्भदे ? खवगोवसमसेढीसु अतरकरण कादणेगाणियमणुभाग बंधमाणस्स सुद्धणवकबधसकमणावत्थाए किट्टीवेदगकालव्भतरे च । देसघादित्त च तत्थेव लव्भदे । जहण्णाणुभागस कमो एदेसिं देसघादी एयट्ठाणिओ च, जहासभवणवकबंधस्स किट्टीण चरिमसमयसकामणाए तदुवलभादो) अजहण्णाणुभागसकमो एयट्ठाणिओ वेठाणिओ वा देसघादी वा सव्वधादी वा, अणुकस्सस्सेव तदुवलभादो । जयध० ३ कुदो ? उक्कस्साणुकस्स जहण्णाजहण्णभेदाण सम्वेसिमेव देसघादित्तदसणादो | जयध० ४ तदुक्कस्साणुभागसंकम वेवाणिओ चेव तत्थ लदा-दारुअसमाणाणुभागाणं दोण्ह पिणियमेणीवलभादो । अणुक्कसो वेठ्ठाणिओ एयछाणिओ वा; दंसणमोहक्खवणाए अवस्सट्ठिदिसतकम्मप्पहुडि एयट्ठाणाणुभागदसणादो । हेटछा विठ्ठाणियणियमादो जहण्णाणुभागसंकमो णियमेणेयट्टाणिओ, समया त
SR No.010396
Book TitleKasaya Pahuda Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1955
Total Pages1043
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size71 MB
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