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Gāthā 58] Exposition of the Interval between the Subsidence and Eruption of Karmic Influx 331. The duration (of the subsidence and eruption of karmic influx) is as follows: 169. At the maximum, the duration is equal to eight Sāgaropamas. 170. What is the duration of the subsidence and eruption of the remaining karmas? 171. The minimum duration is one samaya. 172. The maximum duration is nineteen samayas. 173. The remaining (aspects) are like the subsidence and eruption of wrong belief. 174. However, the minimum and maximum duration of the subsidence and eruption of the inexpressible (karmas) is one samaya. 175. This is the interval (between the subsidence and eruption). 176. What is the duration of the interval between the subsidence and eruption of wrong belief? 177. The minimum duration is one samaya. 178. The maximum duration is a little more than one hundred and thirty-three Sāgaropamas.
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________________ गा० ५८] भुजाकारस्थितिसंझम-अन्तर-निरूपण ३३१ मुहत्तं । १६९. उक्कस्सेण वे छावहिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । १७०. सेसाणं कम्माणं भुजगारसंकामओ केवचिरं कालादो होदि ? १७१. जहण्णेणेयसमओ । १७२. उक्कस्सेण एगूणवीससमया । १७३. सेसपदाणि मिच्छत्तभंगो। १७४, णवरि अवत्तव्यसंकामया जहण्णुकस्सेण एगसमओ।। १७५. एत्तो अंतरं । १७६. मिच्छत्तस्स भुजगार-अवढिदसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होदि १ १७७. जहपणेण एयसमओ । १७८. उकस्सेण तेवढिसागरोवमसद उत्कृष्टकाल कुछ अधिक एकसौ बत्तीस सागरोपम है ।।१६८-१६९।। _शंका-शेष कर्मोंके भुजाकारसंक्रमणका कितना काल है ? ॥१७॥ समाधान-शेप कर्मों के भुजाकारसंक्रमणका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल उन्नीस समय है ।।१७१-१७२।। विशेपार्थ-उन्नीस समयकी प्ररूपणा स्थितिविभक्तिमे बतलाये गये प्रकारसे जानना चाहिए। चर्णिस०-शेप पदोके संक्रमणका काल मिथ्यात्वके समान जानना चाहिए । विशेषता केवल यह है कि शेप पदोंके अवक्तव्यसंक्रमणका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ॥१७३-१७४॥ चूर्णिसू०-अब इससे आगे भुजाकारादि संक्रमणोका अन्तर कहते हैं ।।१७५।। शंका-मिथ्यात्वके भुजाकार और अवस्थित संक्रमणका अन्तर काल कितना है ? ॥१७६।। समाधान-मिथ्यात्वके भुजाकार और अवस्थित संक्रमणका जघन्य अन्तर काल एक समय और उत्कृष्ट अन्तर काल साधिक एक सौ तिरसठ सागरोपम है ॥१७७-१७८॥ विरोहेण सकिलिट्ठो सम्मत्तट्ठिदीए उवरि मिच्छत्तछिदि तप्पाओग्गवड्ढीए वड्ढाविय सव्वलहु सम्मत्त पडिवण्णो भुजगारसकमेण अवट्ठिदसकमेण वा परिणदो त्ति तस्स अतोमुहुत्तमेत्तो सम्मत्त सम्माच्छित्ताणमप्पदरसकमणजहण्णकालो होइ । अहवा सम्मत्त पडिवजिय अतोमुहुत्तमप्पदरसरूवेण सम्मत्त सम्मामिच्छताण ट्ठिदिसकममणुपालिय सम्वलहु दसणमोहक्खवणाए वावदस्स पयदजहण्णकालो परूवेयव्यो । १ त जहा-एक्को मिच्छाइट्ठी पढमसम्मत्त घेत्त ण सव्वमहतमुवसमसम्मत्तद्धमप्पदरसकममणुपालिय वेदयसम्मत्तण पढमछावट्ठिमणुपा लिय अतोमुहुत्तावसेसे तम्मि अप्पयरसकमाविरोहेण मिच्छत्त सम्मामिच्छत्त वा पडिवण्यो। तदो अतोमुहुत्तण वेदयसम्मत्त पडिवजिय विदियछावठिमप्पयरसकमेणाणुपालिय तदवसाणे अंतोमुहुत्तावसेसे मिच्छत्त गदो । पलिदोवमासखेनभागमेत्तकालमुवेल्लणावावारेणच्छिय सम्मत्तचरिमुवेल्लणफालीए तदप्पयरसकम समाणिय पुणो वि तप्पाओग्गेण कालेण सम्मामिच्छत्तचरिमफालिमुव्वेलिलय तदप्पयरकाल समाणेदि । एवं. पलिदोवमासखेजभागन्भहियवेछावसिागरोवमाणि दोण्हमेदेसिं कम्माणमुक्कस्सपयदहिदिसकमकालो होइ । जयध० २ एत्थ जहणतर भुजगारावठ्ठिदसकमेहिंतो एयसमयमप्पयरे पडिय विदियसमए पुणो वि अप्पिदपद गयरस वत्तव्यं । उकस्सतर पि अप्पयरकस्सकालो वत्तत्वो। णवरि भुजगारंतरे विवक्खिए अवटिठदकालेण सह वत्तव | अवदितर च भुजगारकालेण सह वत्तव्व । जयध०
SR No.010396
Book TitleKasaya Pahuda Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1955
Total Pages1043
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size71 MB
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