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Anantānubandhi kṣāyaka's jhaghanya sthitisaṃkramaṇa is the least in the second earth. The jhaghanya sthitisaṃkramaṇa of samyaktva is asaṃkhyātaguṇa more than the jhaghanya sthitisaṃkramaṇa of anantānubandhi. The jhaghanya sthitisaṃkramaṇa of samyagmithyātva is visēṣādhika than the jhaghanya sthitisaṃkramaṇa of samyaktva. The jhaghanya sthitisaṃkramaṇa of the twelve kaṣāyas and nine nōkaṣāyas is equal.
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________________ ३२७ गा० ५८] स्थितिसंक्रम-अल्पवहुत्व-निरूपण १३६. सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णहिदिसंकमो असंखेज्जगुणो'। १३७. पुरिसवेदस्स जहण्णट्ठिदिसंकमो असंखेज्जगुणो । १३८.इत्थिवेदस्स जहण्णढिदिसंकयो विसेसाहिओ। १३९. हस्स-रईणं जहण्णढिदिसंकमो विसेसाहिओ । १४०. णqसयवेदस्स जहण्णहिदिसंकमो विसेसाहिओ। १४१. अरइ-सोगाणं जहण्णहिदिसंकमो विसेसाहिओ । १४२. भय-दुगुंछाणं जहण्णहिदिसंक्रमो विसेसाहिओ। १४३. बारसकसायाणं जहणहिदिसंकमो विसेसाहिओ । १४४. मिच्छत्तस्स जहण्णढिदिसंकमो विसेसाहिओ। ___१४५. विदियाए सव्वत्थोवो अणंताणुबंधीणं जहण्णहि दिसंको । १४६. सम्मत्तस्स जहण्णहिदिसंकमो असंखेजगुणों । १४७.सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णढिदिसंकमो विसेसाहिओं । १४८.वारसकसाय-णवणोकसायाणं जहण्णडिदिसंकमो तुल्लो असंखेज्जसे अनन्तानुवन्धीकषायका जघन्य स्थितिसंक्रमण असंख्यातगुणित है । अनन्तानुवन्धी कपायके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रमण असंख्यातगुणित है । सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिसंक्रमण असंख्यातगुणित है। पुरुपवेदके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिसंक्रमण विशेष अधिक है। स्त्रीवेदके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे हास्य और रतिका जघन्य स्थितिसंक्रमण विशेप अधिक है। हास्य-रतिके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिसंक्रमण विशेष अधिक है। नपुंसकवेदके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे अरति और शोकका जघन्य स्थितिसंक्रमण विशेष अधिक है। अरति-शोकके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे भय-जुगुप्साका जघन्य स्थितिसंक्रमण विशेष अधिक है। भय-जुगुप्साके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे बारह कषायोका जघन्य स्थितिसंक्रमण विशेष अधिक है । वारह कपायोके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रमण विशेष अधिक है ॥१३३-१४४॥ चूर्णिसू०-दूसरी पृथिवीमें अनन्तानुबन्धीका जघन्य स्थितिसंक्रमण सबसे कम है। अनन्तानुबन्धीके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे सम्यक्त्वप्रकृतिका जघन्य स्थितिसंक्रमण असंख्यातगुणित है । सम्यक्त्वप्रकृतिके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रमण विशेष अधिक है। सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य स्थितिसंक्रमणसे वारह कपाय और नव नोक १ उव्वेल्लणाचरिमफालीए जहण्णभावोवलद्धीदो एत्यतणी पलिदोवमासखभागायामा चरिमफाली अणताणुबधीविसजोयणाचरिमफालीआयामादो असखेजगुणा, तत्थ करणपरिणामेहि घादिदावसेस्स एत्तो थोवत्तसिद्धीए गाइयत्तादो | जयध० २ हदसमुप्पत्तिकम्मियासणिपच्छायदणेरइयम्मि अतोमुहुत्ततम्भवत्यम्मि पलिदोवमासखेज्जभागेणूणसागरोवमसहस्सचदुसत्तभागमेत्तपुरिसवेदजहण्णछिदिसकमावलबणादो । जयध० ३ तत्य विसजोयणाचरिमफालीए करणपरिणामेहि लद्ध घादावसेसिदाए सम्वत्थोवत्ताविरोहादो। जयघ० ४ उज्वेल्लणचरिमफालीए लद्धजहण्णभावत्तादो। जयध० ५ कारण-पढमदाए उव्वेल्ल्माणो मिच्छाइट्ठी सम्वत्य सम्मामिच्छत्तुवेल्लणकडयादो सम्मत्तस्स विसेसाहियमेव ठिदिखंडयघाद करेइ जाव सम्मत्तमुवेल्लिद ति | पुणो सम्मामिच्छत्तमुवेल्लेमाणो सम्मत्त
SR No.010396
Book TitleKasaya Pahuda Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1955
Total Pages1043
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size71 MB
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