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Jain Terms Preserved: 1. Mithyatva (false belief), Sammamithyatva (mixed true and false belief), Barasakasaya (twelve passions), Itthi-veda (female sex), Napumsaka-veda (neuter sex) 2. Samyaktva (right belief), Samjvalana-lohha (passions of attachment) 3. Samjvalana-krodha (passions of anger) 4. Samjvalana-mana (passions of pride) 5. Samjvalana-maya (passions of deceit) 6. Purisa-veda (male sex) 7. Chhannokasaya (six no-passions) 8. Gati (state of existence) 9. Samyaktva-silagana (right belief and conduct) 10. Suddhadristi (pure perception)
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________________ गा० ५८] स्थितिसंक्रम-अद्धाद्धद-निरूपण ३१९ ४२. एत्तो जहण्णयं वत्तइस्सामो । ४३. मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्त-बारसकसाय-इत्थि-णqसयवेदाणं जहण्णद्विदिसंकमो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । ४४. सम्मत्त-लोहसंजलणाणं जहण्णहिदिसंकमो एया द्विदी। ४५. कोहसंजलणस्स जहण्णहिदिसंकमो वे मासा अंतोमुहुत्तूणा । ४६. माणसंजलणस्स जहण्णहिदिसंकमो मासो अंतोमुहुत्तणो । ४७. मायासंजलणस्स जहण्णट्ठिदिसंकमो अद्धमासो अंतोमुहुत्तणों । ४८. पुरिसवेदस्स जहण्णट्ठिदिसंकयो अह वस्साणि अंतोप्नुहुत्तूणाणि । ४९. छण्णोकसायाणं जहण्णढिदिसंकमो संखेज्जाणि वस्साणि । ५०. गदीसु अणुमग्गियव्यो । ५१. सामित्तं । ५२. उक्कस्सडिदिसंकामयस्स सामित्तं जहा उक्कस्सियाए हिदीए उदीरणा तहा णेदव्वं । चूर्णिसू०-अव इससे आगे जघन्य अद्धाच्छेदको कहेगे । मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कपाय, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद, इन कर्मोंके जघन्य स्थितिके संक्रमणका काल पल्योपमका असंख्यातवॉ भाग है। सम्यक्त्वप्रकृति और संज्वलनलोभकी जघन्य स्थितिके संक्रमणका काल एक स्थिति है । संज्वलनक्रोधके जघन्य-स्थिति-संक्रमणका काल अन्तर्मुहूर्त कम दो मास है । संज्वलनमानके जघन्य-स्थिति-संक्रमणका काल अन्तर्मुहूर्त कम एक मास है। संज्वलनमायाके जघन्य-स्थिति-संक्रमणका काल अन्तर्मुहूर्त कम अर्ध मास है । पुरुपवेदके जघन्य स्थिति-संक्रमणका काल अन्तर्मुहूर्त कम आठ वर्ष है । हास्यादि छह नोकपायोके जघन्यस्थितिसंक्रमणका काल संख्यात वर्ष है । इसी प्रकारसे गतियोसे भी जघन्य संक्रमणके कालका अन्वेषण करना चाहिए ॥४२-५०॥ चूर्णिसू०-अब स्थितिसंक्रमके स्वामित्वको कहते है-उत्कृष्ट स्थिति-संक्रामकका स्वामित्व जिस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणामे कहा है, उस प्रकार जानना चाहिए ॥५१-५२॥ तस्संतकम्मिगो वंधिऊण उक्कस्सियं मुहुत्ता। सम्मत्त-सीसगाणं आवलिगा सुद्धदिट्ठीओ ॥३९॥ चूर्णि:-'तस्सकम्मिगो' इति, सम्मत्त सम्मामिच्छत्तसतकम्मिगो मिच्छादिली 'वधिऊण उक्त स्सिग' ति मिच्छत्तस्स उक्कस्स टिठति बधिऊण 'मुहुत्तता' इति, अतोमुहुत्ता परिवडिदूण सम्मत्त पडिवण्णस्स अतोमुहुत्तूणा मिच्छत्तद्रुिती सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त'सु सकमते । ततो आवलिय गतूण सम्मादिट्ठी ओवट्टणाए सम्मत्त सकामेति, सम्मामिच्छत्त सम्मत्त सकामेति ओवति वि । 'सुद्धदिठ्ठि' त्ति सम्मादिट्ठी । कम्मप० सक० १ कुदो, मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्ताण दसणमोहक्खवणाचरिमफालीए अणताणुवधीण विसजोयणाचरिमफालिसकमे अट्ठकसायाण च खवयस्स तेसिं चेव पच्छिमछिदिखायचरिमफालीसकमकाले इस्थिणवुसयवेदाण पि चरिमट्ठिदिखडयम्मि सुत्तुत्तपमाणजहण्णट्ठिदिसकमसभवोवलद्धीदो । जयध० २ सम्मत्तस्स दसणमोहक्खवणाए समयाहियावलियमेत्तसेसे लोहसजलणस्स वि सुहुमसापराइयक्खवणद्धाए समयाहियावलियाए सेसाए ओकडुणासकमवसेण पयदाछेदसभवो वत्तव्वो । जयध० ३ खवयस्स चरिमठिदिबधचरिमफालिसकमणावस्थाए तदुवलभादो। कुदो अतोमुहूत्त णत्त ? ण, आवाहाबाहिरस्सेव णवकवधस्स तत्थ सकतीए तणत्ताविरोहादो । जयध० ४ कुदो, तेसि चरिमट्ठिदिखडयायामस्स तप्पमाणत्तादो । जयव०
SR No.010396
Book TitleKasaya Pahuda Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1955
Total Pages1043
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size71 MB
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