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68. Thus, for the sixteen kasāyas. 69. For the nine vedanīyas - arati, śoka, bhaya, and jugupsā - it is the same. 70. The duration of the utkriṣṭa (maximum) state of samyaktva and samyag-mithyātva is one samaya. 71. The jāghanya (minimum) and utkriṣṭa duration is one samaya. 72. The duration of the utkriṣṭa state of strīveda, puruṣaveda, hāsya, and rati is one samaya for the jāghanya and one āvalī for the utkriṣṭa. 73. The jāghanya duration is one samaya. 74. The utkriṣṭa duration is one āvalī. 75. Similarly, the duration of the utkriṣṭa state should be understood for all the gatis (modes of existence). 76. The jāghanya duration of the satkarmika (meritorious) karmas is known. 77. The duration of the kleśa (affliction) of mithyātva, samyaktva, and samyag-mithyātva is considered to be antarmuhūrta (less than a muhūrta, i.e., less than 48 minutes).
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________________ गी० २२ ] स्थितिविभक्ति-काल-निरूपण ६८. एवं सोलसकसायाणं । ६९. णव सयवेद - अरदि-सोग- भयदुगुंछाणमेवं चेव । ७० सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणमुकस्सट्टिदि विहत्तिओ केवचिरं कालादो होदि १ ७१. जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । ७२. इथिवेद- पुरिसवेद-हस्स-रदीण मुकस्स डिदि - विहत्तिओ केवचिरं कालादो होदि १ ७३. जहणेणं एगसमओ । ७४. उक्कस्सेण आवलिया । ७५. एवं सव्वासु गदीसु । ७६. जहण्णहिदिसंतकम्मियकालो । ७७ मिच्छत्त-सम्मत्त सम्मामिच्छत्तसंक्लेशका काल अन्तर्मुहूर्त -प्रमाण माना गया है, अतएव कारणके अनुरूप कार्यका होना स्वाभाविक है । चूर्णि ० - इसी प्रकार से सोलह कपायोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल और अन्तर्मुहूर्त - प्रमाण है । इस ही प्रकार नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा, इन प्रकृतियोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल और उत्कृष्टकाल जानना चाहिए || ६८-६९॥ १०३ चूर्णिसू० – सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्व, इन दोनोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिका कितना काल है ? इन दोनो प्रकृतियोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है || ७०-७१ ॥ विशेषार्थ -‍ - सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्व, इन दोनो प्रकृतियोके उत्कृष्ट बन्ध करने - के एक समयमात्र जघन्य और उत्कृष्ट काल कहनेका कारण यह है कि मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोकी सत्तावाला मिध्यादृष्टि जीव जब तीव्र संक्लेशसे मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके अन्तर्मुहूर्त पश्चात् ही वेदकसम्यक्त्वको ग्रहण करता है, तव वेदकसम्यक्त्वके ग्रहण करनेके प्रथम समयमे ही सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन दोनो प्रकृतियोकी उत्कृष्ट स्थिति पाई जाती है । चूर्णिसू० - स्त्रीवेद, पुरुपवेद, हास्य और रति इन चार नोकपायोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति का कितना काल है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल एक आवली -प्रमाण है ॥७२-७४॥ विशेषार्थ - इसका कारण यह है कि कपायोका कमसे कम एक समय या अधिक अधिक आवली - प्रमाण काल तक उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करके एक समय या एक आवलीकालके अनन्तर इच्छित नोकपायका वध करके कपायोकी गलित शेप उत्कृष्ट स्थितिके उसमे संक्रमण कर देनेपर उनके बंधनेका नियम है । चूर्णिसू० - इसी प्रकार ओघके समान सभी गतियोमे भी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके कालकी प्ररूपणा जानना चाहिए ॥ ७५ ॥ चूर्णिसू० ० - अब जघन्य स्थितिसत्कर्मिक जीवोंके कालको कहते है-मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृति, अनन्तानुबन्धी आदि सोलह कपाय, स्त्रीवेद पुरुषवेद और नपु
SR No.010396
Book TitleKasaya Pahuda Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1955
Total Pages1043
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size71 MB
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