SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८७ ) कांति फिर तुम्हारे अनुमान का आधार क्या है ? निरंजना (लेख की ओर इंगित करके ) इसके शीर्षक से अनुमान होता है कि कमी-कभी पारिवारिक समस्या उन्हें चिंतित कर देती होगी ; अन्यथा लेखक तो कल्पना की मनोरम व टिका में हो विचरण करना चाहता है। कांत परंतु हम पार्थिव जगत के जावों की पहुँच वहाँ तक कैसे हो सकती है? निरंजना बड़ी सरलता से। लेखक नो अपने संपर्क में आने वाले सभी व्यक्तियों को उस रम्य लोक को सैर करना चाहता है, फिर तुम तो उनकी महचरी हो । तुम तो" कांति (सरुचि ) क्या ? निरंजना नारी तो लेखक की स्फूतिदायिनी होती है और जब... .. कांति होगी, मुझे तो ... मैं तो प्रत्यक्ष की बात जानती हूँ। कल्पना की अमृतधारा किसी प्यासे को तृप्त नहीं कर सकती।
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy