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________________ ( ६ ) संजीवनी विद्या में; सीखना उनसे यही । स्वतंत्र भारत की वर्तमान परिस्थिति में सुरुगुरु के आदेश भारतीय नवयुवकों के लिए भी घटित होते हैं कि सुरभूमि भारत आध्यात्मिकता का केंद्र रहा, मानवता के पाठ हम पढ़ते-पढ़ाते रहे, परतु दानवों की संजीवनी विद्या अर्थात् विज्ञान से अनभिज्ञ रहे । अतएव देवासुर संग्राम में देवभूमि की हार हुई। असुरों की पारस्परिक मारकाट के परिणाम मे देवभूमि भारत को स्वतंत्र होने का अवसर मिला है तो शीघ्र ही आधुनिक शुक्राचार्य से हमारे नवयुवकों को विज्ञान की संजीवनी विद्या सीखनी है, तभी हम अपनी स्वतंत्रता की रक्षा कर सकेंगे । सुरुगुर का पुत्र 'कच' शंका करता है: सिवायगे रिषु का हो विद्या संजीवनी वे काटेंगे हाथ से डाल अपनी क्या स्वयं ही ? उसका समाधान सुरुगुरु करते हैं सिद्धि यही विद्या की । विद्या दान से ही बढ़ती है, पाश्चात्य विद्वानों ने वैज्ञानिकों में विज्ञान - विनिमय करके ही वैज्ञानिक उन्नति की । प्राच्य संसार न उसे छिपाने और बंद रखने का प्रयत्न किया गया । अतएव यहाँ विद्या फूल - फल न सकी । इस एकांकी नाटक का एक घंटे के भीतर सरलता से अभिनय हो सकता है ।
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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