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________________ गए थे। ( बाहर की ओर झाँककर ) बड़ी तड़क है धूप में (विषय बदलती हुई, मालती के हाथ की पत्रिका को संकेत करके ) यह क्या है ? मालती इसमें उनका लेख है-'संपादक का जोवन' । ( दृष्टि गड़ाकर उसकी मुखाकृति का अध्ययन करने को प्रयत्नशील होकर ) तुमने तो पढ़ा होगा इसे ? कांति ( उत्सुक होकर परंतु उदास स्वर में ) उनका लेख ! मैंने तो नहीं पढ़ा । ( आगे बढ़कर पत्रिका हाथ में लेती हुई, धीमे स्वर से ) 'संपादक का जीवन ।' मालती हाँ, बहन ! पढ़ो जरूर इसे तुम। (कुछ रुक कर आत्मीयता जताते हुए ) बुरा न मानना...."मालूम होता है . संपादक जी से तुम संतुष्ट नहीं हो । पर..... । कांति (तटस्थ भाव से ) संतुष्ट-असंतुष्ट होने का सवाल ही कहाँ उठता है जीवन में। भाग्य ने जो कुछ लिख दिया,""""जिससे संबंध हो गया, वह तो निभाना ही पड़ता है यहाँ। [मालती उसकी ओर ताकने लगती है; तभी कांति के मुखमंडल पर उपहास का भाव खिल उठता है और वह हँस पड़ती है।
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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