SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४५ ) शीला मुझे भी । (हरी की तरफ इशारा करके) हरी दो संतरे अकेले खा गया ! सुधा बिचारी रोने लगी । था। सतीश अकेले नहीं खाना चाहिये कुछ उस दिन माँ ने बताया शीला मैं तो सब चीजें तुझे देकर खाती हूँ। तू कभी देता है, कभी नहीं देता । सतीश जरा सी जो चीज मिलती है, वह तुझे नहीं देता; बहुत मिलती है तो देता हूँ । [ एक फेरीवाला कपड़े की गठरी पीठ पर लादे श्राता है और निकल जाता है । लड़के उसकी ओर देखकर कानाफूसी करते हैं । कपड़ेवाला दूर निकल जाता है तो हरी श्रावाज देता है - कपड़ेवाले ! श्री कपड़ेवाले ! फेरीवाला लौटता है। पास श्राकर पूछता है – किसने बुलाया ? हरी हँस पड़ता है; उसी के साथ सब हँसने लगते हैं । कपड़े वाला क्रोध से घूरता हुआ लौट जाता है । ] शीला अम्मा ने कहा था -- साड़ी मँगा दूँगी । सो रही हैं, नहीं तो आज ले लेती ।
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy