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________________ ( २६ ) दमकता मुग्त्र मंडल श्रालोकित हुआ उसका दिव्य प्रभा से । रविमडल उसी क्षण हुा अस्त दूसरी श्रोर ; चकित हो, मुग्ध-से कुछ पुलकित-से ज्यों मूद लिए अनुरंजित नेत्र अपने सूर्य व ने । 5 मृदु मधुर कलरव छा गया नभ में विहंगम-वृंद जयजयकार करते जैसे दों मोद से । गौरव की उनके दिव्य अनुभूति ने प्रेरित किया सभी का । पिता सम्मुख खड़े थे उसके । उठती थीं 1 गणित, वृद्ध हृदय में सुरगुरु के गर्व-गौरवयुक्त बलवती भावनाएँ । दोलित हृदय का द्वंद्व परिणत हो चुका था सहज स्वर्गीय सुख में उनके । भव्य प्रभा - ज्योति-कलिका श्रहा ! खिल उठी । सरल श्रभिमान-जीवन से सिंचित-सी होकर मुखोद्यान में । निमग्न हो गए वे आनंदावि में; पा लिया चिरवांछित जैसे
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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