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________________ ( १२४ ) पर दृढ़ रह कर तुम्हारा मन्तक ऊँचा कर सकूँ। (सेनानायक से) चलिए, अब देर क्यों करते हैं ? मरियम (सावेश) अच्छा बेटा, जा ; तुझे मैं सहर्प विदा करती हूँ। देख, मेरी आँखों में आँसू नहीं हैं; देख, मेरे हृदय में व्याकुलतासूचक कोई हलचल नहीं है। (सेनानायक से) तुम देख रहे हो, तुम साक्षी रहोगे कि ईसा की माता ने पुत्र को हँसते-हँसते बलि होने के लिए भेजा था। पुत्र को भेजते समय उसके आँखों में आँसू नहीं थे, मुख पर उदासी नहीं थी, हृदय में हलचल नहीं थी .. ... ... ... ... (स्वर क्रमशः क्षीण होता जाता है ; वह मुंह ढक लेती है ।) [ सेनानायक संकेत करता है । सैनिक ईसा को घेर कर चलना चाहते है। ईसा के दोनों शिष्य हक्के-बक्के से खड़े हैं । मरियम 'हाय बेटा' कह कर मूर्छित हो जाती है । दोनों शिष्य उसे सम्हालते है। तभी ईसा के चौथे शिष्य का प्रवेश । ] चौथा शिष्य गुरुदेव, देव, जाने से पहले मेरे पाप का मुझे दंड देते जाइए। आपको बंदी बनाने का अपराधी श्रापका यही कलंक शिष्य है, जिसे आपने सदैव प्यार किया है, सदैव दुलराय है । (मूर्छित मरियम के पास बैठ कर) माता, तुम्हारे पुत्र क घातक तुम्हारे सुख का संसार उजाड़ने वाला यह नीच यह बैठा है । सोने के ढेर के लोभ में उसने यह पाप कमाया है
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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