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________________ --[३४]कर्मों का फल क्या परमात्मा देता है ? कर्मबन्धन या भाग्यनिर्माण के विषय में जैनदर्शन के साथ किसी तरह थोड़े बहुत अंतर से आर्य समाज, सनातन धर्मानुयायी, ईसाई, मुसल्मान आदि सहमत हो सकते हैं परन्तु जीव को कर्मों का फल देने के विषय में जैन सिद्धान्त के साथ वे सहमत नहीं हो सकते। जिसका कि मुख्य कारण यह है कि वे एक ऐसे परमात्मा को मानते हैं जो त्रिकालज्ञाता, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, दयालु और न्यायकारी है वह परमात्मा ही समस्त संसारी जीवों को उनके कर्मों के अनुसार सुख दुख आदि फल दिया करता है। संसार में समस्त जीवों को सुख दुख आदि जो कुछ भी हुआ करता है सब उस पर.. मात्मा की ओर से हुआ करता है। न्यायाधीश (मजिष्ट्रेट) के समान न्याय भी परमात्मा करता है और जेल सुपरिन्टेन्डेन्ट के समान संसारी जीवों को दंड देने की व्यवस्था भी परमात्मा ही करता है। सारांश यह है कि संसार में प्रत्येक चर अचर, पशु, पक्षी, मनुष्य आदि जीव जन्तु को जो किसी भी तरह का . कष्ट या आराम मिल रहा है वह सब परमात्मा की प्रेरणा पर उसके (इन्साफ) के अनुसार मिल रहा है। किन्तु उनकी इस मान्यता में निम्नलिखित अनिवार्य दोष आते हैं १- संसार में कोई भी जीव पापी, अन्यायी, अत्याचारी : नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि हमारी निगाह में तो कसाई
SR No.010392
Book TitleKarma Siddhant Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherAjit Kumar
Publication Year
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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