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________________ - [३१] - चस्पी से नहीं करता, उनको दिलसे बुरा समझता हुआ लाचारी से करता है जिस तरह धाय दूसरे के बच्चे को ऊपरी प्रेम दिखलाती हुई पालती है अथवा वेश्या धन की खातिर पुरुषों के साथ बनावटी प्रेम दिखलाती है। ऐसी ही दशा उस भेदविज्ञानी की हो जाती है। तब वह अन्याय, अत्याचार, पाप कार्य अपने आप छोड़ कर क्रोध, मान, फरेब, लोभ, विपयवासना आदि को यथाशक्ति कम करता जाता है । इस तरह के आचरण को जैनदर्शन में सम्यक् चारित्र ( Right conduct - सही अमल ) कहते हैं । जिसका नतीजा यह होता जाता है कि वह कर्मों के भार से बहुत हलका होता जाता है । आगामी कर्मबन्ध थोड़ा होता C जाता है । जिस समय घर बार छोड़ कर वह साधु बन जाता है उस समय सांसारिक मंत्रों से बिलकुल अलग होकर शांति, क्षमा, धीरज, सन्तोप, ब्रह्मचर्य आदि का पूरा आचरण (अमल) करता है इसके सिवाय अपने मानसिक विचारों को सव ओर से हटाकर, आत्मध्यान ( आत्मा की समाधि ) में निश्चल हो जाता है । उस समय मोह, क्रोध आदि भाव न रहने के कारण आत्मा कार्माण स्कन्धों का आकर्षण करना बन्द कर देता है। जिससे कर्म बनने बन्द हो जाते हैं और पहले के कमाये हुए कर्म अपना बिना कुछ फल दिये आत्मा से दूर होते जिस तरह किसी मनुष्य ने त्रिप खा लिया होवे उसके जाते हैं । बाद वह
SR No.010392
Book TitleKarma Siddhant Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherAjit Kumar
Publication Year
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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