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________________ देगा | -[=] ४- मोहनीय कर्म - वह है, जो कि आत्मा में राग द्वेष, क्रोध, अभिमान, छल कपट, लोभ आदि बुरे २ भाव उत्पन्न करता है | शरीर, धन, स्त्री, पुत्र, मकान आदि से मोह ( प्रेम ) इसी कर्म के निमित्त से होता है । दूसरे को अपना शत्रु (दुश्मन) मान लेना भी इसी कर्म के निमित्त से होता है । अर्थात- यह कर्म आत्मा पर ऐमी मोहनी ( वशीकरण या जादू) ढालता है, जिससे आत्मा को अपने भले बुरे का विचार जाता रहता है । जिन शान्ति, क्षमा, सत्य, विनय, संतोष आदि बातों से आत्मा की भलाई होती है उन बातों से कर्म के कारण आत्मा दूर भागता है और जिन बातों से वर, अशान्ति, लालच, क्रोध, घमण्ड, संसारी चीज़ों से मोह. पैदा होता है उन बातों की ओर इस आत्मा का खिंचाव हो जाता है । इस जो जीव या मनुष्य दुष्ट स्वभाव वाले, क्रोधी ( गुस्सावाज्र ) अभिमानी ( घमंडी ) उपद्रव करने वाले, झगड़ाल, धोखेबाज, लालची, हिंसक, निर्दय ( बेरहम ) अधर्मी अन्यायी देखने में आते हैं उनका मोहनीय कर्म बहुत तीव्र है । तथा जो मनुष्य सदाचारी, क्षमाशील, निरभिमानी, सरल, परोपकारी विरागी देखे जाते हैं; समझना चाहिये कि उनका मोहनीय कर्म बहुत हलका है । क्रोध, मान, छल, लोभ, मोह वैर आदि दुर्भावों के →
SR No.010392
Book TitleKarma Siddhant Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherAjit Kumar
Publication Year
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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