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________________ -[६]— आया ? नहीं; क्योंकि वही चपरासी उसी समय श्रीधर का भी तार लेकर आया था जिसमें उसके पुत्र के मरण का समायार था जिसको पढ़ कर उसको बहुत भारी शोक हुआ था । तो क्या तार के लिखे हुए अक्षरों में सुख रक्खा हुआ था ? यह भी नहीं, क्योंकि उसी तार को दूसरे मनुष्य पढ़ते हैं, तो उनको जरा भी सुख नहीं होता । इससे मानना पड़ेगा कि ला० मनोहरलाल जी का सुख उस तार के भीतर नहीं भरा हुआ 'था क्योंकि आनन्द यदि उसमें रक्खा हुआ होता तो और मनुष्य भी उसको पा जाते। इसके सिवाय उसी तार को दूमरा पुरुष आकर यों पढ़ े कि "आपके घर पुत्री पैदा हुई है" तो मनोहरलाल जी की सारी खुशी उसी समय उड़ जाती है इस से यह सिद्ध हुआ कि श्रानन्द, सुख, खुशी मनोहरलाल जी के भीतर ही है, तार में नहीं । · किसी दफ्तर में एक कर्ल्स का वेतन ( तनख्वाह ) सवादी रुपये से बढ़कर डेढ़ सौ रुपये मासिक हो जाता है, वह बहुत सुखी होता है । तब क्या १५०) डेढ सौ रुपये मासिक तनख्वाह में सुख रक्खा हुआ है ? नहीं; क्योंकि दूसरे प्रधान कर्क की तनख्वाह पौने दो सौ रुपये से घटाकर १५० ) डेढ़ सौ रुपये मासिक करदी जाती है तो वह प्रधान कर्क उसी डेढ़ सौ रुपये मासिक से दुखी होता है । इस कारण मानना पड़ेगा कि सुख डेढ़ सौ रुपये मासिक तनख्वाह में नहीं रक्खा हुआ है, वह तो उस मनुष्य के ही भीतर है । •
SR No.010392
Book TitleKarma Siddhant Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherAjit Kumar
Publication Year
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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