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________________ (८१) ऐंस सात ग्रह उपरांत राहु मिथुन गगि का उच्च स्थान में भागया व मध्य रात्रि में मकर लग्न में मधरात को सर्वत्र उद्योत करके नारकी के जीवों को भी दो घड़ी नक मुग्छ होने पर माता त्रिशला देवी ने महावीर प्रभु को जन्म दिया. चौथा व्याख्यान समाप्त । जं रयाणं च णं समणे भगवं महावीरे जाए, सा एं रयणी वहहिं देवेहि देवीहि अोवयंतेहिं उप्पयंतेहि य उणिज लमाणमूत्रा कहकहगभूषा प्रावि हुत्था ।। ६६ ब ।। . जिस रात्रि में भगवान महावीर का जन्म हुआ उम रात्रि में बहुत से देव देवी पाने से और जाने से सर्वत्र आनंद व्याप रहा दीग्वना या और अस्पष्ट उच्चार से हर्प के आवाज आरहे थे. प्रभु का जन्म महोत्सव । प्रभु के जन्म समय दिशाएं हर्पित होगई ऐसा दिखने लगा मंद मंद सुगंधी वायु चलने लगा तीन जगत में उद्योन होगया, आकाश में देव इंदुभी ( एक जात का देवी वाजिंत्र ) वजने लगी नग्क के नीनों को भी योदी देर तक शानि होगई पृथ्वी रोमांचित दीखने लगी. ५६ दिक्कुमारियों का उत्सव । अधोलोक की माठ भोगकग, भोगवती, मुभागा, भोग मालिनी, सुबत्सा, वत्समित्रा, पुष्पमाला, आनंदिता, देविएं आसनकंप से उपयोग टेने गे भवधि मान द्वारा प्रभु का जन्म जानकर आई और माता को नमस्कार कर इशानकोण में मृति का ग्रह बनाकर एक योजन की जमीन संवर्त वायु मे शुद्ध की मेएफरा मेघवती, सुमेघा, मेघ मालिनी, तोयधारा विचित्रा वारिपेणा, बलात्का, ये आठ उप्रलोक से पाकर देवीयों ने नमस्कार फर सुगंधी जल पुष्प की ष्टि की. ___ नंदामरा, नंदा, आनंदा, नंदिवर्धना, निमया, वैजयंनी, जयंनी, अपराजिना भाठ दिनकुमारी पूर्व रुप मे आकर नमस्कार कर दर्पण पर दी गी. . की.
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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