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________________ (७८) सीएहिं नाइउण्डेहिं नाइतित्तेहिं नाइकडुएहिं नाइकमाइएहिं नाइअंबिलेहिं नाइमहुरेहिं नाइनिहिं नाइलुक्खहिं नाइउल्ल हिं नाइसुक्केहिं सवृत्तुगभयमाणसुहेहिं भोयणच्छायणगंधमल्लेहिं ववगयरोगसोमोहभयपरिस्समा जं तस्स गम्भस्स हिअंमि यं पत्थं गम्भपोसणं तं देसे अकालेअाहारमाहारेमाणी विवित्तमउएहिं सयणासणहिं पइरिकसुहाए मणोष्णदूलाए विहारभूमीए पसत्थदोहला संपुण्णदोहला संमाणियदोहला अविमाणिप्रदोहला वुच्छिन्नदोहला ववणीअदोहलासुहंसुहेणं प्रासइ सयइ चिट्ठइ निसीआइ तुयट्टइ विहरइ सुहंसुहेणं तं गम्भ परिवहइ ॥६५॥ उसके बाद त्रिशला क्षत्रियाणी गर्भ रचार्य स्नान कर देव की पूजा कर कौतुक मंगल के चिन्द से विघ्नों को दूर कर सब अलंकार वस्त्रों को पहरकर आनन्द में रहने लगी और बहुत ठंडे वा बहुत गरम वा बहुन तांग्वे, बहुत कहर . बहुत कपायले, बहुत खट्टे, वहुत मीठे, बहुत घी तेल वाले चीकटे, वहुत लूख, घहुन हरे, बहुत मुम्बे, ऐसे पदार्थों को खाना छोड दिया और ऋतु अनुसार अनुकूल भोजन वस्त्र गंधमाला उपयोग में लेने लगी और रोग शोक मोह परिश्रम को छोड दिये ऐसे वैद्यक रीति अनुसार पथ्य हित परिणामयुक्त (थोडा) भाजन गर्भ की पुष्टि देने वाला खाने लगी और योग्य वस्तु भोगने लगी नि- , ोप कोमल शय्या जो एकांत सुख देने वाली हो, और हृदय को प्रसन्न करने वाली विहार भूमि (अनुकूल जग्या में ) फिरने लगी. छ ऋतु में उपयोगी चीज । वर्षा ( चौमास ) में लूण, ( नमक ), शरद ऋतु में जल, शिशिर में खट्टा रस, वसंत में घी, ग्रीष्म में गुड़ वगैरह अनेक उपयोगी चीज उपयोग में लेनी ।। क्योंकि गर्भवती स्त्री अयोग्य वस्तु को खावे वा अयोग्य वस्तु का उपभोग में लेवे तो नीच लिखे हुए दोपों की उत्पनि होनी है.
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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