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________________ (७५) ऐसा विचार हुवा कि ऐसी उत्तमोत्तम वस्तु बढती है वो प्रताप सब गर्भ का है इसलिये गुणों के साथ मिलता पुत्र का जन्म होने पर वर्द्धमान (वृद्धि करने पाला ) नाम रखेंगे. तएणं ममणे भगवं महावीरे माउग्रणुकंपणछाए निचले निप्पंदे निरयणे अल्लीणपल्लीणगुत्ते श्रावि होत्था ।। ६१ ॥ महावीर प्रभु की मातृ भक्ति ।। महावीर प्रभु ने माता की भक्ति से उसकी कुति में कोई भीतर दुःख न हो इसलिये निश्चल निष्का स्थिर होकर अंगोपांग को हिलने बंध किये (जैसे कि एक योगी समाधि लगाकर बैठना है ). नएणं तीसे तिप्तलाए खत्तिपाणीए अयमेयारूवे जाव संकपे समुपज्जित्था-हडे मे से गमे, मडे मे से गठभे, चुए मे से गम्मे; गलिए मे से गमे, एम मे गम्भे पुदि एयइ, इ. याणिं नो एयइ तिकटु ग्रोहयमणसंकप्पा चिंतासोगसागरसं: पविठ्ठा करयलपल्हत्थमुही अट्टज्माणोवगया भूमीगयदिट्ठिया झियायइ, तंपि य सिद्धत्थरायवरभवणं उबरयमुइंगतंतीतल. तालनाडइज्जजणमराज्जं दीणविमणं विहरइ ।। ६२ ॥ ___ अपने गर्भ को हिलना नहीं देखकर त्रिशला माना को इस तरह मनमें विचार हुवा कि मेरा गर्भ किसी ने हरण किया, मेरा गर्भ परगया, मंग गर्भ पड़ गया, मेरा गर्भ प्रवाही होकर निकल गया क्योंकि थोड़ी देर पहले हिलना था अब नहीं हिलना से मनमें संकल्प करके शुन्य होकर चिंना समुद्र में होकर हथेली में मुख स्थापन करके आर्न ( संताप ) श्यान में स्वकर पृथी नरफ दृष्टिकर विचार करने लगी यहां ग्रंथकना बादामा दुःग का वर्णन करने हैं. में निर्भागिणी हं मेरे घर में निधान (पन भंडार ) फलों में गमन
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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