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________________ (६४) गेहेड़ितो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नगरं मज्झमज्झणं जेणेव सिद्धत्यस्स पो भवणवरवळिसगपडिदुवारे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भवणवरवर्डिसगपांडवार एगा मिलांत, मिलित्ता जणव बाहिरिग्राउ वट्ठाणसाला,जेणेव सिद्धस्थे खत्तिए, तेणेव उवागच्छत्ति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहिअंजावकद्द, सिद्धत्थं खतिश्र जएणं विजएणं वद्धाविति ॥ ६७ ॥ इस ऊपर लिखे दृष्टांत को याद कर सर्व ज्योनिपियों ने अपने में से एक एक को नायक बना लिया और उसी के पीछे २ सर्व राजसभा में आये हाथ जोड़कर राजा को आशीर्वाद दिया आपकी जय हो "तीसरा व्याख्यान समाप्त हुवा" तएणं ते सुविणलक्षणपाढगा सिद्धत्थणं रगणा वंदियपूइप्रसकारिअसम्माणिया समाणा पत्ते२पुवन्नत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति ।। ६८॥ राजा ने उनको नमस्कार किया सत्कार, सन्मान पूजन कर यथोचिव भामन पर विधाये जव सर्व ज्योनिपी लोग पूर्व में लगाये हुत्रे पाठ भद्रासन पर बैठ गये तब पीछे. तएणं सिद्धत्थे खत्तिए तिसलं खत्तियाणिं जवाणिअंतरियं भवइ, ठावित्ता पुप्फफलपडिपुण्णहत्थे परेणं विणएणं ते सुविलक्षणपाढए एवं वयासी ॥ ६ ॥ सिद्धार्थ राजा ने त्रिशला राणी को पूर्व कथित पड़दे के भीतर बुलाकर भद्रासन पर विठाई और हाथ में फल फुल लेकर हाथ जोड़कर उन सर्व ज्योतिपियों से कहने लगा (नीतिशास्त्र में ऐसा कहा है कि जिस समय राजा देवता, गुरु वा ज्योनिपी के पास जावे उस समय खाली हाथ कभी भी नहीं जावे)
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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