SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६२ ) त्थरयमिउमसूरगुत्ययं सेयवत्यपच्चत्ययं सुमउयं यंगसुहफरिसं विसिहं तिसलाए खत्तियाणीए भद्दासणं रयावे ||६३|| रयावित्ता को विपुरिसे सहावे, सहावेत्ता एवं वयासी ॥ ६४ ॥ राजा ने सिंहासन पर बैठ ईशान कोण में आठ भद्रासन सफेद वस्त्रों से शोभित बनवाये और उसे सफेद सरसों और दीव से मंगल उपचार कर उस से थोड़ीसी दूर अनेक जाति के मणि रत्नों से विभूषित बहूत देखने योग्य उत्तम जाति का स्निग्ध, बड़े शहर में बना हुवा कोमल वस्त्र विद्याया उस आसण में अनेक जाति के चित्र थे. जैसे इहा, मृग, बैल, घोड़ा, आदमी, मगर, पक्षी, सांप, किन्नर, रुरु, सरभ, चत्ररी गाय, हाथी बनलता, पद्मळता श्रादि उत्तम चित्रों से वह आसन शोभायमान था जैसा राणी का शरीर कोमल था और संपदायुक्त था वैसा ही उसके हेतु पट्ट बस्न से ढका हुवा भद्रासन एक सुन्दर पड़ड़े के भीतर रखवाया अर्थात् वह आसन राणी को सुख से स्पर्श करने योग्य बनाया गया इतना करा के सिद्धार्थ राजाने अपने कुटुम्ब के पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा. खिप्पामेव भो देवाप्पिया ! टुंगमहानिमित्चसुत्तत्यधारए विविहसत्यकुसले सुविएल+खणपाढए सद्दावेह ॥ तए ते कोडुविपुरिसा सिद्धत्येयं ररणा एवं बुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ जाव-हियया, करयल जाव - पडिमुति ॥ ६५ ॥ भां देवानुप्रिय ! आप लोग आठ प्रकार का महा निमित्त ( ज्योतिष ) सूत्रार्थ जानने वाले दूसरे शास्त्रों के पंडित, स्त्रम लक्षण बताने में निपुण पंडितों को बुलावां. ऐसी राजाज्ञा सुनकर विनय से हाथ जोड़ कर थाना सिर पर चढा कर वे लोग (पंडितों की खोज में ) निकले. पडिणित्ता सिद्धत्यस्स खत्तियस्स अंतिचा पडिनिक्खमंति कुंडपुर नगरं मज्यंमज्झेणं जेणेन सुविणलक्खण
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy