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________________ (५३) पर बैठ कर, शांति विश्रांति लेकर सुखासन पर बैठी हुई राणी त्रिशला देवी इस प्रकार वोलने लगी. हे नाथ ! आज रात्री में मैंने शय्या में अच्छी तरह सोते हुवे चौदह स्वप्न देखें हैं (जिसका वर्णन पूर्व में कहा है ) कृपया कहें कि उनका क्या अच्छा फल मेरे को होगा. __ तएणं से सिद्धत्थे राया तिसलाए, खत्तिप्राणीए अतिएं एयमढे सुच्चा निसम्म हतुष्ठचित्त आमंदिए पीइमणे परमसो. मणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए धाराहयनीवसुरभिकुसुमंचचुमालइयरोमकूवे ते सुमिणे भोगिरहेइ, ते सुमिणे प्रीगिाण्हेत्ता ईहं अणुपविसइ, ईहं अणुपविसित्ता अप्पणो साहाविएणं मइपुव्वएवं बुद्धिविगणाणण तास समिणाणं अत्युगगहं करेइ, करित्ता तिसलं खतिप्राण ताहि इट्ठाहिं जाव मंगल्लाहिं मियमहुरसस्सिरीयाहिं वग्गूहि संलवमाणं २ एवं वयासी ॥ ५१ ॥ सिद्धार्थ राजाने त्रिशला राणी के मुख से यह रहस्य सुनकर, संतुष्ट होकर कदंब वृक्ष के पुष्प जिस प्रकार मेघ के जल से विकस्वर होते हैं उसी भांति विकस्वर होकर अच्छी तरह स्वप्नों को समझ कर अपनी स्वभाविक, मति, युद्धि विज्ञान से स्वप्नों का अर्थ विशेष विचार करके त्रिशला राणी को अति उत्तम, मधुर वचनों से कहने लगा. उराला णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा, कल्लाणा णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्टा, एवं सिवा, धन्ना, मंगल्ला, सस्तिरीया, प्रारुग्ग-तुहि-दीहाउ-कल्लाण-(ग्रं,३००) मंगल्ल-कारगाणं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिट्ठा, तंजहा, अत्थलामो देवाणुप्पिए ! भोगलाभो०, पुत्तलाभो० सुक्खला. भो० रज्जलाभो०-एवं खलु तुमे देवाणुप्पिए ! नवगहं मामा
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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