SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४६) . क्षीर सागर का वर्णन । ___ अग्यारमें स्वप्न में त्रिशला रानी ने क्षीर समुद्र देखा वह समुद्र कैसा है कि चंद्रमा की किरणों के समान शोभायमान है और चारों दिशाओं में से जिसमें जल समूह बह रहा है और जिसमें चञ्चल से भी चञ्चल कल्लोले बहुमसी उठरही हैं जिन कलोलों के कारण जल ज्यादा चञ्चल होरहा है और धीमी २ हवा के कारण कल्लोलें चलायमान होकर किनारे आकर टकरें खाती है और उन का शब्द हो रहा है जिनसे समुद्र शोभायमान होरहा है उसमें एक कल्लोल के पीछे दूसरी कल्लोल दोड़ती है अर्थात् एक तरंग के पीछे दूसरी तरंग लग रही है. पहले एक छोटी तरंग उठती है तो उसके बाद बड़ी उठती है इस प्रकार की तरंगों की शोभा जिसमें है और जिसमें अनेक जलचर पशु जैसे मगरमछ, मछलियां, तिमि तिमिगल, निरुद्ध तीलि तिलक इत्यादि आपस में जिस समय क्रीड़ा करते हैं उस समय उनकी पूंछों से उछले हुवे पाणी में जो फेण उत्पन्न होते हैं वह कल्लोलों के साथ किनारे पर आते हैं उनके समूह कपूर के ढेर के समान मालुम होते हैं और जिस समुद्र में गंगा इत्यादि नामी नदियों का पानी आता है और जिसमें दूसरी हजारों नदियों का जल पाता है ऐसा क्षीरसागर त्रिशला राणी ने स्वप्न में देखा. तो पुणो तरुणसूरमंडलसमप्यहं दिपमाणसोभं उत्तमकंत्रणमहामणिसमूहपवरतेयअट्ठसहस्तदिप्पंतनहप्पईवं कणगपयरलवमाणमुत्तासमुज्जलं जलंतदिव्वदामं ईहावि (मि) गउसभतुरगनरमगरविहगवालगकिन्नररुरुसरभचमरसंसत्तकुंजरवणलयपउमलयभत्तिचित्तं गंधब्बोपवज्जमाणसंपुण्णघोसं निचं सजलघणविउलजलहरगज्जियसदाणुणाइणा देवदुंदुहिमहारवेणं सयलमवि जीवलोयं पूरयंतं, कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कडझंतधूववासंगउत्तममघमघंतगंधुडयाभिरामं निचालोयं सेयं सेयप्पभं सुरवराभिरामं पिच्छइ सा सोवभोगं वरविमाणपुंडरीयं १२ ॥ १४ ॥
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy