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________________ (२८) और पहिला वासुदेव भी होगा इस प्रकार प्रमू के मुख से मरिचि के भविष्य भत्र सुनकर भरत महाराज को अत्यन्त आनन्द हुवा और भगवान को वंदन नमस्कार कर बाहिर आकर मरीचि से कहने लगे कि भगवान ने तेरे भर इस प्रकार वर्णन किये है तू वासुदेव और चक्रवर्ती होगा इसकी मुझे खुशी नहीं हैं परन्तु आखरी तीर्थंकर इस वर्तमान चोवीसी का होगा इसका मुझे अनि हर्ष हैं और इसी कारण से मै तुझे नमस्कार करता हूं और नमस्कार कर कर अपने स्थान को गये मरीचि को इतनी खुशी हुई वा नाचने लगा और कहने लगा कि मेरा कुल सत्र से उत्तम है मेरे पिता और दादा ता चक्रवर्ती और तीर्थकर के प्रथम पद पर है ही पर मैं स्वयम् वासुदेव चक्रवर्ती और तीर्थकर होने वाला हूँ इसलिये मेरा ही कुल सर्वोत्तम है ऐसा २ वारंवार कह कर कृढ़ने लगा जिससे नीच गोत्र बांधा, शास्त्रों में कहा है कि कभी नइंकार न करना चाहिये जो पुरुष जाति, कुल, ऐश्वर्य चल, रूप, तप और मान का अहंकार करना है तो उसको दुसरे भवों में प्रकार का फल दीनता से हीनता से मिलना है और महावीर के भव में ब्राह्मण कुल में अर्थात् नीच कुल में आया पगचि साधूओं के साथ २ ग्रामानुग्राम विहार करता फिरता था. ऋषभदेव स्वामी के मोक्ष होने के पश्चात् एक समय पूर्व संचित कर्मानुसार मरीचि वीपार हुवा और उस समय अन्य किसी भी साधू ने उसकी संवा न की इसलिय उसने एक शिष्य बनाने का विचार किया कपिल राज पुत्र का उपदेश दिया जिससे उसे वैराग्य उत्पन्न हुवा और उसने दिक्षित होने के लिये मरिची से प्रार्थना की मरीचि ने उसे अन्य साधुओं के पास जाकर दीक्षा लेन को कहा तत्र राजपुत्र कहने लगा कि क्या आपके पास धर्म नहीं हैं ? जो श्राप मुझं दुमरों के पास जाने को कहते हैं ये सुनकर और ये समझ कर कि ये मेरा शिष्य होने योग्य है उस दीक्षा दी और कहा कि दोनों जगह ही धर्म है, इस अमत्य वचन के बोलने से शिष्य तो अवश्य पिला पर उसने फांडा कोडी सागरम का भ्रमण कम उपार्जन कर लिया इस प्रकार से विचरता हुवा अपनी चोरासी लाख पूर्व की आयु पूर्ण कर ब्रह्म देवलोक में दम सागरोपम की आयु वाला देव उत्पन्न हुवा कपिल शिष्य ने भी अपने अनेक शिष्य बनाये और पष्टीतंत्र इत्यादि ग्रंथ भी बनाये और मायु पूर्ण कर ब्रह्म देवन्तोक में गया.
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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