SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२२२) बैठना हो, अथवा मंदिर में जाना हो, अथवा स्थंडिल जाना हो, पढने को चैठना हो, अथवा काउसग करना हो तो उनको पूंछना वह मंजूर करे और सुखाई वस्तु की रक्षा वह करे तो वाहर जासके और जो दूसरा साधु मंजूर न करे तो कुछ भी कार्य उस समय नहीं करना (क्योंकि वर्षा आजावे तो वस्तु विगड़ जावे). वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंधाण वा निग्गंथीण वा अणभिग्गहियसिज्जासणियाणं हुत्तए, आयाणमेयं, अणभिग्गहियसिज्जासणियस्स अणुचाकूइयस्स अणट्ठावंधियस्स अमियासणियस्स प्रणातावियस्स असमियस्स अभिक्खणं २ अपडिलेहणासीलस्स अपमज्जणासीलस्स तहा तहा संजमे दुराराहए भवइ ॥ ५३॥ चोमासा में साधूओं को पाट तखता चौकी विना सोना बैठना न कल्पे, जो न रखे, या पाट तखते को स्थिर न कर हिलते रखे, दूसरे जीवों को पीड़ा करने को ज्यादह रखे, धूप में न सुखावे, इर्या समिति न रखे, प्रति लेखना वारंवार न करे, ऐसे प्रमादी साधूओं को संयम कठिन होता है अर्थात् ज्यादह दोप लगाकर अशुभ कर्म वांधते हैं. अणादाणमेयं, अभिंग्गहियसिज्जासणियस्स उच्चाकूइयस्स अट्ठावंधिस्स मियासणियस्स प्रायावियस्स समियस्स अभिक्खणं २ पडिलेहणासीलस्स पमज्जणासीलस्स तहा २ संजमे सुधाराहए भवइ ॥ ५४॥ . किन्तु पाट चौकी वापरने वाले प्रमार्जन पहिलेहण करने वाले अप्रमादी साधु संयम सुख से अच्छी तरह पाल सकेगा अर्थात् जीव रक्षा अच्छी तरह कर सकेगा और सद्गति मिला सकेगा. वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गथाण वा निग्गथीण वा तो उच्चारपासवणभूमीनो पडिलेहित्तए, न तहा
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy