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________________ ( २१६ ) आकाश का पानी, बरफ का पानी, घूमर ( ओस ) का पानी, ओला, तृण वा हरिपर पडा पानी उनकी यतना करना साधु साध्वी का कर्त्तव्य है. वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा गाहावइकुलं भत्ता वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, नो से कप्पर अापुच्छित्ता आायरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्ति गणिं गणहरं गणावच्छेअयं जं वा पुरओ काउं विहरह, कप्पर से पुच्छिउं प्रायरियं वा जाव जं वा पुरो काउं विहरइ - 'इच्छामि णं भंते तुम्भेहिं श्रन्भरणाए समाणे गाहावइकुलं भत्ता वा पाणाए वा निक्खमि० पविसि० ते य से वियरिज्जा, एवं से कप्पर गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमितएवा जाव पविसित्तए, ते य से नो वियरिज्जा, एवंसे नो कपs गाहाइकुलं भत्ता वा पाणाए वा निक्खमिं० पविसि०| सेकिमाहु भंते ! ? आयरिया पञ्चवायं जाणंति ॥ ४६ ॥ चौमासे में साधु साध्विओं को अपने बडे को पूछकर उनकी आज्ञानुसार गोचरी पानी के लिये गृहस्थिओं के घर को जाना आना कल्पे क्योंकि बड़े पुरुष आचार्य उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्त्तक, गणि गणधर गणावच्छेदक अथवा जिसको वडा बनाया हो वे साधु साध्वी को परिसह उपसर्ग आवे तो रक्षा करने में वे समर्थ है और उसका ज्ञान उन महान् पुरुषों को है. एवं विहारभूमिं वा त्रियारभूमिं वा अन्नं वा जंकिंचि पणं, एवं गामा गामं दूइज्जित्तए ॥ ४७ ॥ मंदिर जाना हो, अथवा और कोई कार्य हो तो वो ही बडे पुरुष को पूछकर करना पुरुष है. इसी तरह स्थंडिल जाना हो करना हो जाना हो दूसरे गांव जाना जाना क्योंकि वे ज्ञाता और समर्थ वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा अरणयरिं
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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