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________________ ( ३ ) इकताए - सागरोवमकोडाकोडीए बायाली सेवा ससहस्सेहिं ऊfree पंचहत्तरिवासेहिं श्रद्धनवमेहि य मासेहिं से सेहिं - इ - कवीसाए तित्थयरेहिं इक्खागकुलसमुपपन्नहिं कासवगुत्तहिं, दोहि य हरिवंसकुलसमुपपन्नहिं गोमसगुत्तेहिं, तेवीसाए तित्थयरेहिं विज्ञकतेहिं, समणे भगवं महावीरे चरमतित्थयरे पुव्वतित्थयरनिद्दिट्ठे, माहाकुंडग्गामे नयरे उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालगुत्तस्स भारियाए देवाणंदार माहणीए जालंधरसगुत्ताए पुव्वरत्तावर त्तकालसमयंसि हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागणं आहारवतीए भववक्कतीए सरीरवकंतीए कुच्छि - सि गन्भत्ता वक्कते ॥ ३ ॥ आज से २४४२ वर्ष पहले महावीर प्रभु का निर्वाण हुवा उसके ७२ वर्ष पहिले के समय में ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु के चोथे मास वा आठवें पक्ष के छठे दिन अर्थात् आषाढ सुदि ६ के रोज श्रीमन् वीर प्रभु का जीव महा विजय पुष्पोत्तर पुंडरिक नाम के बड़े विमान से वीस सागरोपम की स्थिति पूरी करके अर्थात् देवभव पूरा करके सीधे देवलोक से इस जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र के दक्षिण भाग में इस वर्तमान अवसर्पिणी काल के ( १ सुखम सुखम् २ सुखम ३ सुखम दुखम् ४ दुखम सुखम इन चार आरों के बीत जाने में कुछ पिच्योत्तर वर्ष साडे आठ मास वाकी रहे तब [ चार श्रारों का समय प्रमाणः १ चार कोड़ा कोड़ी सागरोपम का. २ तीन कोड़ा कोड़ी सागरोपम का. ३ दो कोड़ा कोड़ी सागरोपम का. ४ एक कोड़ा कोड़ी सागरोपन में बयालीस हजार वर्ष कम का ]) चोथे आरे के अंत में माता के उदर में आये. उनके पहले २१ तीर्थंकरोंने इक्ष्वाकुकुल और काश्यप गोत्र में और २ तीर्थकरोंने हरिवंश कुल और गौतम गोत्र में जन्म लिया. इन २३ तीर्थंकरों ने केवलज्ञान द्वारा पहले ही कहा था कि (२४) चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीर प्रभु ब्राह्मण कुंड नम में कोडाल गोत्र के ब्राह्मण ऋषभदत्त की जालंधर गोत्र की ब्राह्मणी देवानंदा नामी स्त्री के कूख में मध्य १-३ साए । परिमे.
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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