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________________ ( १५४ ) पार्श्वनाथ प्रभु की जुगत कृत भूमि में चार पट्ट तक मुक्ति कायम रही उन के तीर्थ से तीन वर्ष बाद कोई मुनि मोक्ष में गये. . तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे रहा पुरिसादाणीए तीस वासाई गावासमज्भे वसित्ता, तेसीइं राइंदिग्राइं उत्थपरिचय पाउपित्ता, देसूणाई सतरि वासाई केवलिपरित्राय पाउपिता, पडिपुराणाई सत्तरि वासाई सामरणपरियाय पाउलिता, एकं वासस्यं सव्वाउयं पालइत्ता खीणं वेयणिज्जाउयनामगुत्ते इमीसे प्रसपिणीए दूसमसुसमाए समाए बहुविकताए जे से वासाणं पढमे मासे दुच्च पक्खे सावणसुद्धे, तस्म णं सावणसुद्धस्स अट्ठमपक्खेणं उपि समे मेल सिहरंसि अपच उत्तीसहमे मासिएणं भत्ते अपाएरणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागणं पुव्वरहकालसमयंसि वग्घारियपाणी कालगए विइकंते जाव सव्वदुक्खपहणे ॥ १६८ ॥ पार्श्वनाथ के ३० वर्ष ग्रहस्थावास में गये ८३ दिन बद्मस्थ साधुपना में, ७० वर्ष में इतने दिन कम केवल ज्ञान का पर्याय, ७० वर्ष कुल दीक्षा पर्याय कुल १०० वर्ष का आयु पूर्ण कर चार अधाति कर्म क्षीण होने पर चोथे आरे का थोड़ा समय बाकी रहा तब श्रावण सुदी ८ के रोज विशाखा नक्षत्र में संमेत शिखर पर्वत उपर ३३ पुरुषों के साथ एक मास की संलेखना चौबिहार उपवास कर प्रभात में लंबे हाथ रखकर खड़े २ मोक्ष में गये सब दुःखों से मुक्त हुए ( उनका मोक्ष खड़े खड़े ही हुआ है । पासस्त णं रहयो जान सव्वदुक्खम्प्रहीणस्स दुवालस वाससयाई विकताई, तेरसमस् य अयं तीसइमे संवच्छरे काले गच्छ ॥ १६६ ॥ G
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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