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________________ ( १५१ ) पंच मृठी लोच किया तेलेका तपमें और चंद्रनचत्र विशाखा में ३०० पुरुषों के साथ दीक्षा लेकर साधु हुए और देवों का दिया हुआ देव दुष्य वस्त्र लिया. ( महोत्सव का अधिकार वीरमभु की तरह जानना ) - पासे णं अरहा पुरिसादाणीए तेसीइं राइंदियाई निचं बोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तंजहा दिव्वा वा माणुस्सा वा तिरिक्खजोषिया वा गुलोमा वा, पडिलोमा वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहइ खमड़ तितिक्खड़ प्राहिया सेइ ॥ १५८ ॥ पार्श्वनाथ ने ८३ दिन तक शरीर का मोह छोड़कर देव मनुष्य तीर्थच के जी उपसर्ग परिसह अनुकुल प्रतिकुल आये उनको सम्यक् प्रकार से सहन किये प्रभु दीक्षा लेकर पीछे विहार करते करते तापस के आश्रम में आकर सूर्यास्त के समय वड वृक्ष की नीचे कायोत्सर्ग किया, पूर्व के बैरी कमठ देवने विभंग ज्ञानसे जान कर प्रभु को रात्रि में बहुत दुःख दिया. धूली उडाई तो भी भगवान को निष्कंप देखकर मेघ बरसाया प्रभुके कंठ तक पानी का पूर चढा घर्णेद्र देव का आसन कंपने से प्रभु के पास आया और पद्मावती देवीने और इंन्द्रने सहाय की अवधिज्ञान से अकाल वृष्टिका कारण ढूंढ मेघमाली देवको जान शीघ्र उसको बुलाकर धमकाया कि रे अम ! क्यों प्रभु को सताता है ? मैं तेरा अपराध नहीं सहन करूंगा ! कंपता कमर मधुके चरण में पड़ा धरणेंद्र ने छोड दिया को शवों का वैर की क्षमा चाह कर चला गया धरणेंद्र भी चला गया. - कमठे, धरणेंद्रचं स्वोचितं कर्म कुर्वति, प्रभोस्तुल्य मनोवृत्तिः, पाश्वनाथः श्रियेऽस्तुत्रः ॥ कमर और धरणेंद्र ने उनकी इच्छानुसार कृत्य किये तो भी करने वाले पर रागद्वेष प्रभुने नहीं किया वह पार्श्वनाथ तुमारे कल्याण के लिये हो । , - तणं से पासे भगवं शणगारे जाए इरियासमिए भासासमिए - जाव अप्पाणं भावेमाणस्स तेसीइं राहंदियाई
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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