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________________ ( १३४ ) है परन्तु हे भट्ट ! ऐसा अर्थ उसका नहीं होना किन्तु वेद पद तीन प्रकार के हैं. 1 विधिदर्शक, अनुवादक, स्तुति रूप वे तीनों अनुक्रम से इस तरह स्वर्ग की इच्छा वाले को अग्निहोत्र करना, वर्ष के बारह मास होते हैं. विश्व पुरुष -रूप है अर्थात् विश्व में भला बुरा पुरुष ही करसक्ता हैं जैसे कि: to विष्णुः स्थलं विष्णु, विष्णुः पर्वतमस्तके | सर्व भूतमयो विष्णु, स्तस्माद्विष्णुमय जगत || ऐसे पत्रों से विष्णु की महिमा बनाई है किंतु और जीवों का निषेध नहीं है और अमूर्त आत्मा को मृत कर्म से कैसे लाभ हानि होवे ? ऐसी तेरी शंका है उसका समाधान यह है कि बुद्धि जो ज्ञान का अंश है वो भी श्ररूपी है और उसको ब्राह्मी (सरस्वती ) वनस्पति से वृद्धि और मदिरापान वगैरह मेहानि भी दीखनी है इसलिये कर्म रूपी होने पर भी अनादि कर्म से मलिन श्ररूपी आत्मा को लाभ हानि करके कर्म फल देते हैं और सुख दुःखों के प्रत्यच ष्टांत जगत् में दिखते हैं अग्नि भूति का समाधान हुआ और वो दूसरे गणभर हुए उनके साथ ४०० शिष्य ने भी दीक्षा केली. वायु भूति का समाधान. तीसरा भाई वायुभूति ने आकर बोडी शरीर वोही जीव की शंका का समाधान करना चाहा प्रभुंन उसका विज्ञान धन पद का अर्थ जो गौतम इन्द्रभूति को सुनाया था बड़ी सुनाकर कहाकि आत्मा शरीर से भिन्न है और सन्यन लभ्यस्तप मां चर्येण नित्यं ज्योतिर्मयां शुद्धोऽयं हि पश्यंति धीरा यनयः संयतात्मनः इत्यादि । उसका अर्थ यह है किः यह आत्मा ज्योतिर्मय शुद्ध है वो नपसा सत्य और ब्रह्मचर्य से प्राप्त होता हैं. और धीरता वाले संयम पालने वाले साधु उस आत्मस्वरूप को जानते हैं. हे भव ! उस पढ़ से आत्मा की सिद्धी होती है और शरीर भिन्न है जैसे दूध में पानी मिलने से दूब पानी की एकता होती है किन्तु दूध वो दूध और पानी सो पानी ही है. वायुभूति शीघ्र ५०० शिष्यों के साथ साधु हुआ और तीस ग गणवर हुआ,
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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