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________________ (१३२) कदापि नहीं है जीव और अजीव ढोनों द्रव्य है और जीव द्रव्य तीनाही काल में मौजूद है वो ही जीव ख्याल रखकर दूसरा पदार्थ को जान सक्ता हैं. __आत्मा संपूर्ण ज्ञानी होजाने वाढ उपयोग की आवश्यकता नहीं है उसका तीनाही काल का ज्ञान है. (जीव विचार नक्तत्व त्रिलोक्य दीपिका संग्रहणी और कर्मग्रंथ देखने की आवश्यकता है पूर्व के दो छप चुके हैं दो छपने वाले हैं) गौतम इन्द्र भूति की शंका का समाधान वेद पदों से ही होगया क्योंकि प्रत्य संना के लिय प्रभु ने और भी बताया था कि जीव दकार त्रय द द द है अर्थात् दान दया दमन ये "तीन दकार" जीव का लक्षण है. अपन पास सद्बुद्धि धन जीवन शक्ति वा कोई भी पदार्थ है उससे परोपकार करना त्याग वृत्ति धारण करना मृा छोड़ना और ज्ञान विमुख धर्म विमुख दुःखी जीवों को मुखी करना और पृष्ट खुराक से वा मोह से उन्मत्त होने वाली इन्द्रियों और मन को दमना अर्थात् कुमार्ग में नहीं जाने देना,वो जीवका लक्षण है किंतु जो विज्ञान घन आत्मा का नाश होवे और प्रत्य संज्ञा न होवे अथवा क्षण भंगुर होवे तो दान दया दमन का फल कौन भोगेगा ? इसलिये प्रेत्य संज्ञा है पूर्व वात की स्मृति होती है वो भी प्रेत्य संज्ञा है और जन्मतेही बच्चों को आहार निंद्रा भय परिग्रह संज्ञा पूर्वाभ्यास की होती हैं जन्म से ही सुख दुःख कुरुप सुरूप ऊंचकुल नीच कुल सत्कार तिरस्कार होता है और जो कुछ अच्छी बुरी वस्तुएं प्राप्त होती हैं वो सब पूर्व कृत्यों का फल रूप है जैसे कि पूर्व वीज का ही फल खनी का पाक है और पदार्थ मात्र में नित्यत्व अनित्यत्व घट सक्ता है जहाँ जैसी अपेक्षा से बोले ऐसी अपेक्षा से अर्थ करना वो स्याद्वाद है और वेढपदों में भी योग्य अर्थ घयन से जीव नित्य भी है अनित्य भी है प्रेत्य संज्ञा रहती भी है नहीं भी रहती है वो उपर की बातों से समझ में आवेगी एक वस्तु में अनंत धर्म का समावेश होसक्ता है सिर्फ बोलने वाले की उसमें अपेक्षा समझनी चाहिये. . वांचने वालों के हितार्थ कुछ यहां पर लिखा है विस्तार से जानने वालों के लिये विशेपावश्यकादि ग्रन्यों को वा बड़ी टीकाएं देखनी चाहिये ) गौतम इन्द्रभूति को संशय दूर होने से शिप्य होकर प्रमु के चरण का शरण लिया गौतम इन्द्र भूति के ५०० शिष्यों ने भी वैसाही किया.
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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