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________________ रिसह इन्द्र से प्रभु का सारसी में कुशल (१२३) मे संगम का तिरस्कार कर उन्होंने निकाल दिया. एक सागरापम का वाकी का आयु पूरा करने को मेरु पर्वत पर चला गया. अग्रमहिपी ( मुख्य देविएं) भी इन्द्र की आज्ञा लेकर उसके पीछे चली गई. ___ आलभी नगरी में प्रभु को कुशल पूछने को हरिकांन इन्द्र आया, और स्वतांवर नगरी में हरिसह इन्द्र आया और श्रावस्ती नगरी में इन्द्र कार्तिक स्वामी की मूर्वि में आकर वंदना की जिससे प्रभु की बहुत महिमा हुई. कौशंबी नगरी में मूर्य चन्द्र प्रमु को बंदन करने को आये, वाणारसी में इन्द्र, राजग्रही में इशानेन्द्र मिथिला नगरी में जनक राजा और धरणेन्द्र ने प्रभुजी को कुशल पूला और अग्यारवां चौमासा प्रभुजी ने वैशाली नगरी में निर्वाह किया. प्रभु का कठिन अभिग्रह (तप) प्रभु जब मुसुमारपुर गये वहां चमरेन्द्र का उत्पात हुआ. ( आश्चर्यों में कहा गया है ) उसके बाद प्रमुजी कोशांवी नगरी गये वहां शतानिक राजा था, मृगावनी उसकी राणी थी, विजया प्रतिहारी थी वाठी धर्म पाठक था, मुगुप्त प्रधान था, प्रधान की भार्या नंदा श्राविका थी वो मृगावती की सखी थी प्रभुने पोस मुदी १ को अभिग्रह लिया कि स्तूप-छाज ( पड़ा) में उडद के वाकला देली में रहकर दुपहर के बाद राज पुत्री जो दासी पने में हो और माथा मुंड हो, पग में वेड़ी हो, आंख में आंसु हो तेले का उपवास का पारणा हो ऐसी बालिका भोजन देवे वो लेना ऐसे अभिग्रह से गांव में फिरें परन्तु श्राहार का योग नहीं मिला, इस समय शतानिक राजा ने चंपा नगरी को लंटी, दधि वाहन राजा मारा गया उसकी रानी धारिणी को कोई सिपाई ने पकड़ी वो शील भंग की भांति से मरगई पुत्री वसुमती को पकड कर सिपाई ने पुत्री बनाकर कोसंबी नगरी में बाजार में वेची धनावह शेठ ने उसको लेकर चंदना नाम रखा शेठ की मूला स्त्री को डर लगा कि दोनों का प्रेम वढताजाता है वो पत्नी भी हो जावेगी, ऐसा विचार कर शेठ की गर हाजरी में उसका शिर मुंडाकर पांव में बेड़ी डालकर घर में कैद कर मूला चली गई भेठ चौथे दिन घर को पाया चंदना की दुर्दशा देखकर डेली में बैठाकर बड़ी तोड़ने को लुहार को बुलाने को गया भूखी पालिका को उड़ढ के वाकुला खान को दिये सोपड़े में रखकर बालिका चाहती थी कि साधु को देकर खाउं! ऐगे समय
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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