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________________ (<4) कवि घंटना. जिस समय प्रभू के शरीर पर चीर सागर का पानी आया तो वह श्वत छत्र समान दीखता था, मुख पर चन्द्र किरण समान, कंठ में हार समान शरीर पर वीन देश के रेशमी वस्त्र के समान वह कलशों में से निकल कर गिरता हुवा जल दीखता या ( वह जगत के जीवों का पाप संताप को शांत करो ) सर्व देवता और इन्द्रों के अभिषेक करलेने के पश्चात् अच्युतेन्द्र ने प्रभु को गोद में लिये, और शक्रेन्द्र ने चार वृषभ (बैल) के रूप धारण कर आठ सींगों से कलश के समान अभिषेक किया और पीछे शुद्धोदक से स्नान कराकर गंध कषायो ( अमूल्य कोमल दुवाल ) वस्त्र से शरीर को पूंछा. और गोशीर्ष चंदन से लेप किया, पुष्प से पूजा की मंगल दीपक और आरात्रिक ( आरती ) कर नृत्य, गति, बार्जित्र वजाकर मनु का जन्म महोत्सव किया पीछे प्रभू को रत्न की चौकी पर बिठा कर अष्ट मांगलिक चिन्ह चावल से किये, दर्पण, वर्धमान, कलश, मत्सयुगल ( ) श्रीवत्स्वस्तिक, ( सथीया ) बनाया और पीछे जिनेश्वर के गुणों की स्तुति की. इत्यादि प्रकार से प्रभु की पूजन तथा गुणगान कर २ प्रभु को पीछा माता के पास लाकर रक्खा और उस प्रतिबिंब को जो प्रभु लेजाने के समय माता के पास रखा था उसको उठाकर और माता की निद्रा दूर कर सिराणे की तरफ कुंडल का जोड़ा और उत्तम रेशमी वस्त्रों का जोड़ा रखा और ऊपर के चंदुवे में श्रीदाम, रत्नदाम, और सुवर्ण का दडा लगाया और वारह कोड सुवर्ण मुद्रा की वृष्टि की और फिर इन्द्र महाराजने अपने अभियोगिक देवों द्वारा उदघोषणा कराई ( हुंडी पिटाई ) कि जो कोई प्रभू का अथवा उनकी माता का अशुभ कर होगा तो उसके मस्तक के एरंड वृक्ष की भांति ७ टुकडे किये जायेंगे. पीछे प्रभू के अंगूठे में अमृत स्थापन कर इन्द्र सहित देवों का समूह नंदीश्वर द्वीप में गया और वहां आठ दिन कां अठाई महोत्सव कर अर्थात् आठ दिन तक जिनेश्वर के पूजन भजन इत्यादि कर अपने २ स्थान को गये. जं रयाणि च णं समणे भगवं महावीरे जाए तं रयणि च णं बहवे वेसमणकुंडधारी तिरियजंभगा देवा सिद्धत्थरायभवसि हिरणवासं सुवरणवासं च वयर वासं च वत्थवासे 1
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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