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________________ ( ८३ ) पालन विमान बनाया. बीच में इन्द्र बैठा, और आठ अग्र महिपी (मुख्य देविएं ) के आठ भद्रासन सन्मुख बनाये थे डावी वाजू पर सामानिक देवों के ८४००० भद्रासन थे, दक्षिण बाजू में अभ्यंतर पर्पदा के १२००० भद्रासन मध्य पर्पदा के १४०००, बाहय पर्पदा के १६००० भद्रासन थे पीछली बाजू पर सात सेनापति के सात भद्रासन थे और चारों दिशा में ८४००० हजार ८४००० हजार यात्म रक्षक देवों के भद्रासन थे और भी कई देवों का परिवार इन्द्र के साथ बैठ गये और जव इन्द्र चला कि उनके साथ इन्द्र के हुकम से कितने देव चले, कितनेक मित्र की प्रेरणा से, कितनेक देवियों के अाग्रह से कितनेक अपनी इच्छा से, कितनेक कौतुक से कितनेक विस्मय से कितनक भक्ति से अपने नये २ वाहन बनाकर चलने लगे. और उनके वाजिंत्र घंटा नाद से और कोलाहल से ब्रह्माण्ड गाज रहा था. आपस में आनंद के लिये कहते थे कि आप अपना वाहन संभालो कि मेरा सिंह उन्मत्त होकर श्रापके हाथी को पीडा न करे. भोस वाला घोड़े वाले को कहता था, गरुड वाला सर्प वाले को, चित्रे वाला वकर वाले को, कहना था. इस तरह आकाश बहुत बड़ा होने पर भी देवो की संख्या ज्यादा होने से छोटा ( संकीर्ण ) दीखने लगा. जो देव जोर से चलते थे उनको दुसरं करने लगे कि मित्र ! मुझे छोड़ आप न जावे, किंतु हर्प से जाने की जल्दी से कॉन सुनता था, कोई को धक्का लगने पर दूसरे को उलम्भा देता था नो दृमग कहता था कि बन्धु ! इस समय पर लेश नहीं करना चाहिये. कवि की घटना। चंद्र के किरण जब उन देवों के मम्नक उपर आये नो निजादेव भी नग वाले अर्थात् बृहे धोले बाल वाले दीखने लगे, और ना मम्न उपर "मगारे" माफक और कंठ में मुक्ताफल की माला की तरह और गर्ग पर पीना क बिंदु माफक दीग्वने लगे दम तरह मब देव आने लगे. ___ पहिले माधर्म इन्द्र नंदीश्वर द्वीप में जाकर अपना यहून या मान को लोटा नाकर महावीर प्रभु के पास आकर तीन मदत्तिणा कर नमस्कार कर माना को फाने लगा। रन्नति ! तुझं नमाही में इन्द्र देन, आप
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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