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________________ (२) तीर्थकरा के लिये प्रथम कल्प ऐसा है कि वे इन्द्र का दिया हुआ देव दुप्य वन दीक्षा के समय कंधे पर डालने है वो गिर जाव तो पीछे पहला और अंतिम तीयतर अचेलक ही रहते हैं उनके पुग्य तंज से दूमरे को नन्न नहीं दीखते और २२ तथिकरों को निरंतर उस्न रहता है और कल्पों में तर्थिकरों का विशप वर्णन देखन में नहीं आया इसलिय सिर्फ २४ तथिकर के साधुओं का ही भेद बताते हैं. साधुओं के कल्पों का भंद, मान के अभिलाण माधुश्रा के कल्पा में भेद होने का कारण सिर्फ कालानुसार उन श्री बुद्धि का भेद है. ऋषभदेव के मधू प्राय: ऋजु जड होने से उनकी समझ में खामी थी और अनजान में अधिक दोप न लगाव इसलिये दश कल यथा विधि पालना एक फर्ज रूप है. महावीर प्रभु के साथ वजड होने से उनको समझ में कम पावे और वक्र हाने में उत्तर भी मीधा नहीं देव इम लय उनको दोप विशेप नहीं लगे इसलिय दशी ही कल्प पालना आवश्यक बताया है. अजित प्रभु से लेकर पार्श्वनाथ तक के साधु ऋजु प्रन्न होने से उनको समझ में शीव आत्र और निष्कपट होने से अधिक दीप का संभव नहीं और अल्प दोप आव तो शीघ्र गुरु को सत्त्र कहकर निर्मल होजावे, इसलिये उनके दृष्टांत बताये हैं. ___एक नाटक ऋपभदेव महावीर और बांच के २२. तीर्थकरों के साधुओं ने देखा और देर म प्राय गुरु के पूछने पर अपभदेव के साधुओंने सरल गुण सं नव कहा. गुमने कहा कि अापको ऐसा नाटक देखना नहीं चाहिये. इमरी वक्त फिर नाटक दंग्या श्रार देर से पाये गुरु के पूछने पर सत्य कहा, गुरुने कहा कि श्रापको नाटक की मना की थी फिर क्या देखा? वो वाल, महाराज !हमने पूर्व में पुम्य का नाटक देवा अाज तान्त्री का देखा है. गुरुने कहा कि ऐसा नाटक स्त्रियों का अधिक मोहक होन से साधुओं को त्याज्य है अब नहीं देखना, यह दृष्टांत से मालूम होता है कि उनकी बुद्धि जढतासे विशप नहीं पहुंच सकी के स्त्री का नाटक नहीं देखना. महावीर के माधुश्रान वक्रता से उत्तर भी सीधा न दिया, धमकाने पर सत्य कहा. गुरुने मना किया, परन्तु दूमरी वक्त भी देखा और गुरुने फिर धमकाये तो सत्य बोलकर वझना से बाल कि ऐसा था तो आपने पुरुष के नाटक के साथ श्री का नाटक मी क्यों निषेध न करा?
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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