SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना ४५ शास्त्री, बनारसने पर्याप्त प्रयत्न किया है। मैंने देखा है कि उक्त दोनों ही व्यक्तियोंके विशाल हृदयमें साहित्यिक सेवाको प्रगति देनेकी भारी अभिरुचि विद्यमान है। ज्ञानपीठके सुयोग्य मन्त्री श्री अयोध्याप्रसादजी गोयलीय भी तत्परताके साथ साहित्य-प्रकाशनमें जुटे हुए हैं। भूमिका. लेखनमें श्री जैन-साहित्य और इतिहास [ श्री नाथूराम प्रेमी ], संस्कृत-साहित्यका इतिहास [श्री कन्हैयालाल पोद्दार ], संस्कृत-साहित्यका इतिहास [ डा० बलदेव उपाध्याय ] तथा संस्कृतसाहित्यका संक्षिप्त इतिहास [पं० सीताराम जयराम जोशी एम० एम०, साहित्य शास्त्राचार्य] आदिसे प्रकरणोपात्त सहायता ली गई है। इसलिए मैं इन सबके प्रति आभारी हूँ। शृङ्गारवहुल काव्य-ग्रन्थोंका हिन्दी-अनुवाद लिखते हुए मुझे सङ्कोच वहुत होता है, पर मूलानुगामी अनुवादमें वह सङ्कोच छोड़ना पड़ा है । ग्रन्थमें कितने ही प्रकरण ऐसे आये हैं जिन्हें पढ़कर पाठकोंको भी सङ्कोच होगा, अतः यदि कदाचित् शास्त्र-सभा आदिमें ग्रन्थका वाचन चले तो वक्ता महाशय उन प्रकरणोंको छोड़कर वाचन करें ऐसी मेरी प्रार्थना है। जीवन्धरचम्पू काव्य-ग्रन्थ है और काव्यको शैलीसे लिखा गया है इसलिए इसमें प्रकरणानुसार शृङ्गारादि सभी रसोंका उच्चतम वर्णन है। अन्तमें मैं अपनी अल्पज्ञतांके कारण ग्रन्थकी टीका तथा अनुवाद आदिमें यदि कहीं त्रुटि कर गया होऊँ जो कि सर्वथा सम्भव है तो विद्वज्जन उसे क्षमा करेंगे। सागर आश्विन वदी ११, सं० २०१५ वि०नि०२४८४ विनीतपन्नालाल जैन
SR No.010390
Book TitleJivandhar Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1958
Total Pages406
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy