SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ ७.८ सप्तपृ. धनोध्यादीनां तिर्यग्वाहल्यम् ७३ 'कोमणाई पंचजोरणाई बाहल्लेणं पन्नत्ते'क्रोशोनानि क्रोशैकेन हीनानि पञ्चयोजनानि शर्कराप्रमाया घनवासबलय विर्यबाहल्येन प्रज्ञप्त इति । 'एवं एएणं अभिलावेणे' एवम् एतेन पूर्वोक्तेन अभिलाषेन-मालाकम सारेण 'बालुगप्पभाए पंचजोयणाई बाहल्लेणं पन्नत्ते' बालुकाधमायाः पञ्चयोजनानि चाहल्येन प्रज्ञप्ता, हे भदन्त ! एतस्या वालुकाममाया घनाखवलयः कियान तिर्यम्वाइल्येन प्राप्तः १ भगवान आह-हे गौतम ! बालुकाममाया घनदाखवलयः पञ्चयोजनानि विर्यग्बाहल्येन पक्षप्तः, इति भावः । 'पंक्रममाए सकोसाई पंचजोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ते' पङ्कममायाः सक्रोशानि क्रोशमहितानि पञ्चयोजनानि बाहल्येन प्रज्ञप्ता, हे भदन्त । एतस्याः पङ्कममायाः पृषिव्याः घनवातवलयः कियान् तिर्यग्बाहल्येन प्रज्ञप्त इति पश्ना, भगवानाइ-हे गौतम ! पक्का भायाः पृथिव्याः घनवासवलयः क्रोशकाधिक पञ्चयोजनानि तिर्यवाहल्येन प्रज्ञप्त इतिभावः । 'धूमप्पभाए अद्धगौतम! शर्कराला का धन नासवलय तिर्यग्वाहल्य की अपेक्षा एक कोश कम पांच योजन का मोटा कहा गया है एवं एएणाभिलावेणं' इसी आलापक प्रकार से ऐसा भी प्रश्न करना चाहिये-हे भदन्त ! पालुकाप्रभा का जो वातवलय है वह तिर्थरबाहल्य की अपेक्षा कितना मोटा कहा गया है उत्तर में प्रभु कहते हैं-गीतम! 'वालुयप्पाए पंचजोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ते' बालुकाप्रभा का घनबोलवलय तियग्बाहल्य की अपेक्षा पांच योजन का मोटा कहा गया है 'पंकप्पाए सक्कोसाइपंचजोयणाई पाहल्लेणं पन्नते' हे भदन्त ! पंकप्रभा पृथिवी के घनयातबलय तिर्यगपाहल्य की अपेक्षा शिलना मोटा कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते है-पपमा का धनवातवलय एक कोश अधिक पांच योजन का मोटा लियबाटल्य की अपेक्षा कहा गया है 'धूम्मप्प. भाए अद्ध छटाई जोयणाई बाहल्लेणं पन्नत' धूमप्रभा पृथिवी का घनवात वलय ॥५॥ अर्द्धषष्ठ अर्थात् साढे पांच योजन का मोटा तिर्य ગૌતમ! શરામભાને ઘનવાતવલય તિર્યબાહલ્યથી અપેક્ષાથી એક કેસ કમ पाय योजना ४९ छे. 'एवं एएणाभिलावेण” मे प्रमाणे मा मापन પ્રકારથી એ પણ પ્રશ્ન કરે જોઈએ કે હે ભગવન વાલુકાપ્રભા પૃથ્વીનો છે ઘનવાતવલય છે, તે તિર્યબાહત્યની અપેક્ષા કેટલો વિશાળ કહેલ છે? આ अशा तरमा प्रल छ । गीतम! 'वालुयप्पभाए पंचजोयणाई बहलेण पम्नत्ते' पाप्रमाना बनात सय छ, त तिमाहत्यानी मपेक्षाथी पांय योगना हेर छ 'पंकप्पमाए सक्कोसाइपंचजोयणाईबाहल्लेण' पन्नते હે ભગવન પંકપ્રભા પૃથ્વીને ઘનવાતવલય તિર્યંબાહલ્યની અપેક્ષાએ કેટલે जी० १०
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy