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________________ fterferमसूत्रे कुशलनरनारी सुसं परिगृहीतायाः, कुशलेन - वीणावादननिपुणेन नरेण-पुरुषेण • नार्या स्त्रिया वा सु-सुष्ठु सम्यक् परिगृहीताया: 'पदोसपचुपकालसमयंसि ' मदोषपत्यृपकालसम्ये, प्रदोषे - सायङ्काले मृत्यूपे - प्रभात वेलायाम्, 'मंद मंद पडया' मन्दं मन्दं शनैः शनैः एजितायाः चन्दनसारकोपेन ईपत कम्पिताया: 'वेश्याए ' व्येजितायाः - विशेषतः कम्पनयुक्तायाः कम्पिताया:- वारं वारं कम्पन युक्ताया' एतावदेव पर्यायेण व्याचष्टे - 'खोभियाए चाकियाए फदियाए घट्टि ure उदीरिया' क्षोभितायाः चालितायाः स्पन्दितायः घट्टिताया उदीरितायाः छत्र क्षोभिताया:- सूर्छा प्राप्तायाः, चालितायाः - प्रेरितायाः, स्पन्दितायाःनखाग्रेण स्वरविशेपोत्पादनार्थमीपच्चालितायाः घहितायाः ऊधोगच्छता eee के ढंग से रगड़ रगड़ कर चलाता है बजाने वाले पुरुषको या स्त्री को बजाने की क्रिया में विशेष निपुण होना चाहिये ऐसा वेमा व्यक्ति वीणा को ढंग से नहीं बजा सकता है और न वह उसे अपने अङ्गगोद में सुव्यवस्थित रूप से रख हो सकता है इन्ही सब बातों को समझाने के लिये 'अंके सुपट्टियाए चंदणसारकोण पविघट्टियाए कुसलनर नारि सुसंगहियाए पदोसपच्चूमकालसममि मंदं २ एहयाए वेड्याए खोभियाए चालियाए फंदियाए घट्टियाए उदीरियाए ओराला मणुण्ना कण्णमणणिव्वुङकरा सवओो समंता सदा अभिणिस्सर्वति' ऐसा पाठ यहां लिखा गया है वीणाका वादन या तो प्रातः काल होता है या सायंकाल के समय में होता है जब वह वीणा चन्दन सार निर्मित दण्डकोण से धीरे धीरे बजायी जाती है या विशेषरूप से जोर २ से बजायी जाती है तब उससे जैसा कर्ण और मनमोहित करने वाला વાદન દઉંડથી વગાડે છે, તાર પર તેને ખજાવવા માટે ઢંગથી ઘસી ઘસીને ચલાવે છે. વગાડનાર પુરૂષ અથવા સ્ત્રી વગાડવાની ક્રિયામાં વિશેષ પ્રવીણ હાવી જોઈએ જેવી તેવી વ્યકિત વીણાને ઢંગપૂર્ણાંક વગાડી શકતી નથી તેમ તે વીણાને પેાતાના ખેાળામાં સુવ્યવસ્થિત રીતે રાખી પણ શકતા નથી, આ ખાખત सभन्नववा भाटे 'अ' के सुपइट्टियाए चांदणसारकोणपरिघट्टियाए कुसलनरनारि सुसंप गहियाए पदोसपच्चूसकालसमय खि मदं २ एइयार वेइयाए खोभिए चलियाए फंदियाए घट्टियाए उदीरियाए ओराला मणुष्णा कण्णमणणिव्वुतिकरा सव्वओ समता सहा अभिणिस्सति' भी प्रभाना या वामां आवे छे. વીણાનુ વાદન કાંતે પ્રાતઃકાળ સવારના સમયમાં અથવાતે સાય કાળ સાંજના સમયયાં થાય છે તે વીણાને જ્યારે ચંદનસારથી બનાવેલા દડાના ખૂણુાથી ધીર ધીરે વગાડવામાં આવે અથવા વિશેષ પ્રકારથી ોર જોરથી વગાડવામાં
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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