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________________ जीवामिगमसूत्रे अथ रक्तवर्णविपये श्रीगौतमः पृच्छति- 'तन्थ जे ते लोहियमा तुणाय मणीय' तत्र तेषां तृणानां मणीनां च मध्ये यानि तानि लोहिनानी गाने ये ते लोदिता मणयच 'सेसिणं अरमेयारूदे वण्णावासे पन्नत्ते' तेपां लोहितवणमणीनां किम् अयम्-अनन्नरमुद्दिश्यमान एतावद्रपो वक्षामाणस्वरूपो वर्णावासा मसा-कथितः, तदेव दर्शाति-'से जहा णामए' तद्यथा नामकम् 'सप्लगहिरेइ का' शशकरुधिसमिति वा, शशकः 'ससारा खरगोश इति प्रसिद्धस्तस्य कधिरम् 'उरभरुहिरेइ वा' उरभ्ररुधिरमिति वा, उपभ्र आणः 'बेटा' इति लोकमसिद्ध स्तस्य रूधिरम्, "जरमहिरेइ वा नररुधिरमित वा 'वराहरु हरेइ वा' चराहरुविरमिति वा वराहो ग्रामशूकर स्तस्य रुधिरम् 'महिसरुहिरेइ वा महिपरुधिरमिति वा, शशकादि महिपानानां रुधिराणि शेषनीवरुधिरापेक्षश उत्कटलोहितवर्णानि भवन्ति, तत एतेषामुपादानम् । 'बालिंदगोपएड वा बालेन्द्र गोपफ इति वा वाले द्रगोपकः सद्यो जात इन्द्रगोपका, स हि प्रवृद्धः सन् ईपद्रको भवति ततो वालग्रहणम् इन्द्र गोपकः प्रथमपाइ मावी कीटविशेषः । 'बालदिदागरेइ वा' बालदिवाकर इति वा, बालदिवाकर प्रथम मुद्गच्छन् मूर्य सचातीव रक्तवर्णों भवति-तथोक्तम् अब श्रीगौतमाचामीलोहित वर्ण के विषय में पूछते है 'तत्व णं जे ते लोहियगाणाध मणीय लेमिणं अयमेघाचे वाचासे पगत्ते' वहां जो लाल वर्णवाले तृण और मणि कहे गये हैं उनका वर्णवाम इम प्रकार होता है क्या ? 'से जहाणामए समर्माहरेश्या' जना शास-खरगोश का रूधिर लाल होता है। 'उरुभमहिरेवा' जैम्बा टाका मधिर ल ल होना है। 'परमहिरेह बा जैना मनुष्य का मचिम लाल होता है। वराहमदिरे बा' जै पा सुकर का रूधिरलाल होला है । 'महिलमहिरेह वा' जैमा ममा का मधिर लाल होता। पालिंदगोवएति वा' जैमा लाल बाल प्रथमवर्षाकालभावो इन्द्रगोपककीट विशेष होता है 'बालदिवामહવે ગીતમરી લેહિત લાલ વર્ણન સ બ ધના પ્રભુશ્રીને પ્રશ્ન કરતાં से मान 'तत्य गंजे से लो हयगा तगा य मणी य रेमिण अयमेया. वे चण्णावासे पण्णत्ते त्यां ela ५ वाणा त सने मणिय द्या छे. तो पास-नमा प्रभा डायथे ? 'से जहानामए ससकमहिरेडवा' ससा ही साय छ, 'णरुहिरेइव।' मनुनु सही a साय छे. 'उमाहिरेवा' टानुसाही रेस हाय वराह गहिरे इवा' १२ सुनुवाडीला त्य छ, 'महिसरहिरेइवा' मे सनु सही सारा डाय छे. 'वालि दगोवएइया' पा वहिना समयमा पन्न थये। मादा ५ 8ीर विशष २१ साद डायो , 'बालदिवाक
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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