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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ ३.३ ३.५२ जगत्याः पावरवेदिकायाश्चवर्णनम् ८०९ तीर्थरैरिति । 'सा णं पउमवरवेइया' सा खलु पद्मपरवेदिका 'अद्धजोयणं उई उच्चत्तण' अर्द्ध योजनं' द्वे गव्यते इत्यर्थः अर्वप्नुञ्चत्वेन 'पंचधणुसयाई विक्खं. भेण' पञ्चधनु शतानि विष्कम्भेण विष्कम्भा-परिरयस्तेन 'जगई समिया परि. क्खेवेणं' जगती समिका परिक्षेपेण यावत्ममाणो जगत्या मध्यभागे परिरयः वात्प्रमाण एव तस्या पद्मवेदिकाया अपि परिक्षेप इति भावः । 'सव्वरयणमई०' सर्वरत्नमयी सामस्त्येन रत्नास्मिका अच्छा श्लक्ष्णालण्हाधृष्टामृष्टा नीरजस्का निर्मला निष्पङ्का निष्कङ्कटच्छाया समभा समरीचिका सोयोता मासादीया दर्शनीया अभिरूपा मतिरूपा पद्मवरवेदिका । एषां व्याख्या पूर्वगतेति । 'सीसे णं पउमवरवेइयाए' तस्याः- पूर्वदर्शित विशेषणविशिष्टायाः खलु पद्मवरवेदिकायाः अयमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते' अयम्-दक्ष्यमाणप्रकारः एतापः-एवं स्वरूपो वर्णवासा-वर्ण:-इलाघा यथाऽवस्थितस्वरूपकीर्तनं तस्या वासो निवासो पउमवरवेदिया' यह पद्मवरवेदिका अद्ध जोयणं उडूं उच्चत्तेणं' आधे योजन की ऊंची है अर्थात् दो कोश जिगनी ऊंची है 'पंचधणुप्लयाई विक्खभेण' और विस्तार में यह ५०० पांच सौ धनुष की है 'सव्वरयणामए तथा यह सर्वात्मना रत्नमय है 'जगई समिया' जितनी जगती का मध्यभाग का परिरय-परिक्षेप है उतना ही परिक्षेप इसका भी है यह पद्मवरवेदिका 'अच्छा इलक्षणा, लष्टा, पृष्टा, नीरजस्का, निर्मलानिष्पंङ्का, निष्कंकटच्छापा लामा समरीचिता लोद्योता दर्शनीया अभिः रूपा प्रतिरूपा' इन अच्छादित विशेषणों वाली है, इन विशेषणों का अर्थ जैसा ऊपर में लिखा गया है-वैमा ही यहां समझ लेना 'तीसेय पउमयरवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते उच्च पद्मवरवेदिका का बेदिया' मा ५१२ : 'अद्धजोयण उड्ढे उच्चत्तण' मायान रखी यी ७. अर्थात् मे आस-पानी या वाणी छे. 'पच धणुसयाई विक्खभेणं' भने ५०० पांयसे। धनुषना विस्तार पाणी छे 'सव्वरयणामए' सवः ॥२ ते २त्नमय छे. 'जगई समिया' । गतीन। मध्य सागना પરિચય-પરિક્ષેપ છે, એટલે જ આને પણ પરિક્ષેપ (ઘેરા) છે. આ પદ્મવરवह 'अच्छा इलक्षणा, लष्टा, घण्टा, मृण्टा, नीरजरका' निर्मला, निष्प का, ( विनानी) निष्क कटन्छाया (131 विनानी) सप्रभा, समरीचिका सोद्योता, दर्शनीया, अभिरूपा, प्रतिरूपा, विगेरे विशेष! पणी छे मा विशेषशान। मथ 2 प्रभाग ५२ रुपामां भाव छ, मे प्रमाणेनाछे, 'तीसेय पउमवर वेइया अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते' ५५१२ वहिनी वर्षापास पान मा प्रभाव छे. 'त' जहा' र 'वइगमया नेमा' मा ५२१२ हनी रेनेमा जी. १०२
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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